गौरीदत्त का जन्म -1836
देवरानी जेठानी की कहानी -1870
गोपाल राय ने पंडित गौरीदत्त के इस उपन्यास को प्रकाशन वर्ष 1870 के हिसाब से हिंदी का पहला उपन्यास माना है इस उपन्यास में तात्कालिक समाज जीवंत हो उठता है मसलन बाल विवाह , विवाह में फिजूलखर्ची ,स्त्रियों की आभूषण प्रियता, बटवारा वृद्धजनों की समस्याएं स्त्री शिक्षा जैसे सामाजिक मुद्दों के चित्रण में यह उपन्यास कभी नहीं चूकता। हिंदी के अन्य जानकारी पाने के लिए मेरे ब्लॉग को फॉलो करे।

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देवरानी जेठानी की कहानी उपन्यास के प्रमुख पात्र
- सर्व सुख मुंशी
- टिकट नारायण
- हरसहाय काबली
- पार्वती
- सुखदेव
- दौलत राम
- छोटेलाल
सर्वप्रथम यह उपन्यास 1870 ई में मेरठ के एक लिथोप्रेस 'छापाखाना ए जीयाई' में प्रकाशित हुआ और इसकी 500 कृतियां प्रकाशित की गई थी और मूल्य केवल 12 आने था।
गोपाल राय ने देवरानी जेठानी की कहानी को हिंदी साहित्य का प्रथम उपन्यास माना है।
छोटे आकार क्राउन साइज के मात्र 35 पृष्ठों की इस छोटी-सी औपन्यासिक कृति में तत्कालीन सामाजिक समस्याओं को इतने सूक्ष्म दृष्टि से इतने बहुआयामी रूप में संदर्भित किया गया है कि हिंदी के प्रथम उपन्यास में ही यह कौशल देखकर आश्चर्य होता है। बाल विवाह, विवाह में फिजूलखर्ची, स्त्रियों की आभूषण प्रियता की वृत्ति , परिवार में अलगौझा की समस्या के साथ बड़े कौशल के साथ नारी शिक्षा के साथ अन्तर्ग्रहीत है।
जब सांयकाल को सारे दिन का हारा थका घर आता ,नून -तेल का झींकना ले बैठती। कभी कहती मुझे गहना बना दो ,रोती -झींकती ,लड़ती भिड़ती। उसे रोटी न करके देती। कहती की फैलाने की बहू को देख,गहने में लद रही है। उसका मालिक नित नयी चीज लावे है मेरे तो घर में आकर भाग फूट गए वह कहता जाने भगवान रोटियों की क्यों कर गुजारा कर रहे हैं तुझे गहने - पाते की सूझ रही है।
इसकी रोचकता और समाज सुधार की दृष्टि से ही प्रभावित हो पश्चिम देशाधिकारी श्री लेफ्टिनेंट गवर्नर बहादुर ने 24 जून 1870 के पत्र द्वारा पंडित गौरीदत्त को ₹100 के पुरस्कार से प्रोत्साहित किया।
बच्चन सिंह ने अपनी 'हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास ' में देवरानी जेठानी की कहानी वामा शिक्षक और भाग्यवती के साथ रखकर इसे 'स्त्री जनोचित शिक्षा' ग्रन्थ कहकर चलता कर देते हैं इसमें औपन्यासिकता का अभाव देखते हैं।