परायी प्यास का सफर -आजमशाह खान -parayi pyas ka safar- aajmshah khan

परायी प्यास का सफर -आजमशाह खान 

आजमशाह खान राजस्थानी धरती के समृद्ध साहित्यिक परिवेश से आते है। उनके कथा साहित्य में निम्नवर्गीय और मध्यवर्गीय व्यक्तियों की विडंबनाओं को दर्शाया गया है। आजमशाह की पहली कहानी संग्रह 'परायी प्यास का सफर' है। इनके द्वारा रचित कहानी संग्रह की संख्या 5 है। 
  1. पराई प्यास का सफर  
  2. किराये की कोख 
  3. एक और सीता 
  4. एक गधे की जन्मकुंडली 
  5. सांसो का रेवड़ 
अंतिम कहानी -हम वतन है -सम्बोधन पत्रिका में प्रकाशित 

कमर मेवाड़ी का कथन -
                                    आलमशाह खान हिंदी कथा साहित्य का ऐसा नक्षत है जिसका प्रकाशन कभी धुंधला नहीं पड़ेगा। प्रेमचंद की परम्परा को विकसित करने में उनका योगदान सराहनीय है। 

परायी प्यास का सफर 

  • पात्र -दो लड़के लखना और बड़के 
  • लखना का सौतेला पिता उसकी माँ और बहन 
  • बड़के की माँ 
  • दुकान का मालिक  
बालमजदूरी का चित्रण 
बालक का शारीरिक और मानसिक शोषण 
सौतेले पिता के द्वारा किया गया अत्याचार 
बाल मनोविश्लेषण 

कहानी का सारांश 

कहानी की  शुरुवात एक दुकान में लखना का सेठ से आदेश  लेकर बार -बार  सीढ़ियों पर ऊपर नीचे करने से होता है। कहानी में लखना ऊपर -नीचे  जाने में नहीं थकता लेकिन उस से एक काम के बाद दूसरा काम दे दिया जाता है। लड़का नशे का भी आदि  हो चूका है १२ वर्ष की उम्र में वह बीड़ी पीता है। उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है। माता दूसरे व्यक्ति  शादी कर लेती है। लखना का सौतेला पिता उसे इसी दुकान में काम पर लगा देता है। 15 रुपए मजदूरी पर लखना वहां  काम करता है। 

'पंद्रह रुपया महीना ,रोटी कपडा और चाय -बीड़ी'
 
लखना का सौतेला पिता उसकी माँ को पीटता है और उसकी बहन को भी पीटता है। लखना उन्ही लोगों  के लिए यहाँ पर काम करता है एक दिन लखना का सौतेला पिता आता है। उससे पैसे मांगने लगता है लखना जवाब देता है. -

'वो कॉलेज के लड़के आने लगे है इधर। इस तेन के चार चम्मच उड़ा ले गए ----एक के सूट पर चाय छलक गयी मुझसे। पांच रूपए यू  कट गए। 

लखना का सौतेला पिता उस पर गुस्सा होने लगता है तेरी एक बहन भी हुई है। तेरी माँ को कमजोरी आ गई है तू काम नहीं करेगा तो खर्चा कैसे चलेगा।  उसका उत्तर देते हुए लखना कहता है। -

'दिन और साँझ की अपनी चाय कट करके मैं टूट -फूट भर दूँगा।' 

लखना और बड़के दोनों एक ही दुकान पर काम करते है वह बात करते है की एक फिल्म बॉबी लगी है। जिसे देखना उन्हें अच्छा लगा। उसे वह पूरा नहीं देख पाए इंटर्वल के बाद का ही हिस्सा देखा है। यहाँ पर लड़को के शारीरिक शोषण का जिक्र है जिससे गार्ड उन्हें फिल्म देखने देता है। 

तू जानता है ,वो सिनेमा की गेट वाला गफूर अपना यार है आजकल ----- ..
यार हाँ जानता हूँ 
फिर 
तू मुझ से उड़ मत  मुझे पता है ,उससे तेरी यारी कैसी है ?
तो क्या हुआ ----थोड़ा गाल -बाल पर दाँत -बात लगा देता है ---और क्या ?
और वो ताले चाबी का खेल नहीं होता ?
होता है ----तो क्या बिगड़ता है कुछ ----फिर फिल्म भी तो दिखता है। 
मैंने भी इंटरवल देखा है बॉबी का। 
तेरे को भी गफूर ने दिखाया है न ?मुझे भी तेरा सब पता है। 

शारीरिक शोषण सिर्फ स्त्रियों का न होकर बच्चों का भी होता है इसे आजमशाह खान ने सफलता पूर्वक चित्रित किया है। किस प्रकार हम किसी चीज का लालच देकर दूसरे व्यक्ति को आकर्षित करते है। शारीरिक शोषण सिर्फ जबरदस्ती ही नहीं होता इसे ऐसे भी सम्पन्न किया जा सकता है इसे बखूबी दर्शाया गया है। जिस व्यक्ति के पास उसका आभाव हो जिसे वह पाना चाहता है और प्रबल इच्छाशक्ति है उस वस्तु को पाने की वह कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो तो वैसे व्यक्ति का भी शारीरिक शोषण उसी प्रकार किया जाता है जिस से वह व्यक्ति विरोध भी न कर पाए और काम भी सध जाये खैर ..----

लखना और बड़के को उनकी मजदूरी मिली है। लखना को खाना बनाने की इच्छा  नहीं है लेकिन बड़का चाहता है  बने उन्हें आज मजूरी मिली है। लखना कहता है -

'अपने किस काम की। दिन चढ़ते न चढ़ते नया बाप आ मरेगा और टेंट में सब खोसकर ले जायेगा। 
वो तेरा बाप तो कल आएगा ,मेरी महतारी तो एडवांस ले भी गयी।' 

 लखना और बड़के खाने के लिए बाहर होटल में चले जाते है  बड़का मना करता है की अगर इस पैसे को तू खा लेगा तो तेरा बाप आएगा तो उसे क्या देगा 'लखना कहता है  की रहूँगा तभी तो। बड़का कहता है -

'तेरी माँ और टुनिया को भी सताएगा।' 

होटल में जाने पर वह पूछते है यहाँ क्या -क्या है। उन्ही का हमउम्र लड़का कई प्रकार के भोज्य पदार्थ का नाम बता देता है यह फिर कहते है पहले पानी लाओ वास्तव में इन्हे कुछ समझ नहीं आता की उसमे क्या ऐसा है खाने का सबसे अच्छा तभी होटल का मालिक  पूछता  है की ऐसे ही आ गए या  कुछ पैसे भी है। लखना दस का नोट हवा में लहराता है ,मालिक कहता है  ये जो मांगे इनके लिए ले आओ। वह सबसे अच्छी सब्जी और रोटी  मंगाते है। उसके बाद गुलाब जामुन। 

वह वापस आ कर लेट जाते है तभी उन्हें प्यास का एहसास होता है और वह एक दूसरे से पानी लाने को कहते है पानी न लखन लाता है  न ही बड़का तभी सेठ लखना को पानी  लाने के लिए बुलाता है लखना तुरंत जाता है और उसे पानी दे कर वापस आता है और वापस लेट जाता है तभी बड़का कहता है अकेले अकेले पानी पी  गया मेरे लिए नहीं  लाया वह कहता है मैंने खुद भी पानी नहीं पिया और उसके  साथ ही कहानी की समाप्ति हो जाती है। 

'प्यासा तो मैं अब भी हूँ ,पर आर्डर सेठ का था ,सो उसे पीला दिया ----मुझे पानी पीने की याद ही नहीं रही। रोज आर्डर देने वाला खाता -पीता है ना। अपन लोग तो बस --- . . 

 समाप्त  


हिंदी साहित्य में किन्नर विमर्श -एक पूर्वपीठिका  साहित्य किसी भी स्थिति की तहों में जाकर समाज का सरोकार उन विमर्शो और मुद्दों से करता है जिस...