डेस्क और बैग 

 रमेश कल स्कूल में देर से जाने के कारण डांट सुनने के बाद आज सुबह जल्दी ही जग गया। उसने कहा आज में सबसे पहले क्लास में जाऊंगा ,क्लास क्या स्कूल में सबसे पहले। मम्मी जल्दी लंच दो  मुझे जाना है। अभी तुम्हारे स्कूल का समय कहा हुआ बगल में ही तो है चले जाना समय से जब प्रार्थना शुरू होने वाला होगा। प्रार्थना का नाम  सुनकर रमेश को गुस्सा आ जाता है ये क्या स्कूल में जाते ही ग्राऊंड में खड़े हो कर गाते रहो गाना। ये प्रार्थना बाद में नहीं कराइ जा सकती। जब गेम का पीरियड हो उस से पहले उसके बाद खेलने का मजा ही कुछ और है, और हम खेलते समय गाते ही तो है। अचानक उसे याद आया नहीं मुझे जाना है सबसे पहले ,मम्मी आप दीदी से खाना भिजवा देना में जा रहा हूँ। अरे सुनो तो कुछ खा तो लो। नहीं मम्मी ,नही.... रमेश को बस जाने की धुन सवार थी। कल उसके डेस्क पर मोहन कैसे बैठ गया था और मेरे बोलने पर सर से शिकायत भी कर दी। इतने पर ही सर ने मुझे इतना डाँटा तुम  जल्दी नहीं आओगे तो बैठना जहाँ सीट मिले। आज देखता हूँ कैसे सीट नहीं मिलती। स्कूल के चौकीदार ने कहा क्या बात है रमेश बाबू आज तो बड़ी जल्दी आ गए स्कूल। रमेश का घर पास होने के कारण रमेश को चौकीदार अच्छी तरह जानता था वह अक्सर दिन में कई बार इसी रास्ते से गुजरता है। रमेश  ने चौकीदार की बात पर ध्यान दिए बिना अपने जल्दी आने के गर्व से फुला नहीं समा रहा था। क्लास में कोई भी बच्चा नहीं है रमेश एक डेस्क पर बैठा। तभी अचानक डेस्क ने रमेश के बैग से बात करनी शुरू कर दी। आज बड़ी जल्दी आ गए तुम्हारी तो नीद भी पूरी नहीं हुई होगी। हा मेरी तो नहीं हुई मगर कोई नहीं यहाँ आ कर तुम्हारे सर पर तो बैठ गया। वैसे आज तुम्हारा वजन कैसे कम हो गया। टिपिन भैया को नहीं लाये क्या साथ। नहीं ये जनाब कल की डांट सुनकर आज उन्हें छोड़ कर ही आ गए। डेस्क ने कहना शुरू किया मेरे बिना तो क्लास होना ही मुश्किल है देखो कैसे ठाट से आ कर बैठ गए मेरे ऊपर। बैग को यह बात असहनीय लगी वह तुरंत बोल पड़ा। मेरे बिना तो ये कभी आ ही नहीं पाएंगे स्कूल में इतने सारे कॉपी किताबो का भार डाले मेरे साथ चल देते है ,डेस्क ने सुनते ही कहा वो भार डाल कर वहां से ला कर पटक देते है मेरे छाती पर छह घंटे से पहले नहीं उठते। रविवार को ही बस  चैन की साँस लेता हूँ। बैग बोल पड़ा तब तो तुम्हे गर्मी की छुट्टियों में आराम मिलता होगा मुझे तो वह भी नहीं मिलता। डेस्क अचानक सोच में पड़ गया और बोला  नहीं गर्मी की छुट्टी में  मेरा भी मन नहीं लगता। अकेले धूल फाकते रहो यहाँ की तब तो यही इंतजार होता है की कब हँसते मुस्कुराते चेहरे इस क्लास में कदम रखेंगे और में तुम्हे फिर से अपने ऊपर बैठा हुआ पाउँगा। बैग ने भी कहा हां यार मुझे भी तुम्हारी याद आती है। हम सभी लोगो का अपना -अपना महत्व है और हम साथ में ही मिलकर खुश है। तभी दरवाजे की खड़कने की आवाज आई। मोहन क्लास में आ गया। रमेश ने उसे कहा आओ साथ में ही बैठते है। मोहन पास्ता लाया है रमेश और मोहन उसे खाने लगते है। 

 समाप्त  

  

हिंदी साहित्य में किन्नर विमर्श -एक पूर्वपीठिका  साहित्य किसी भी स्थिति की तहों में जाकर समाज का सरोकार उन विमर्शो और मुद्दों से करता है जिस...