21 वी सदी के आदिवासी कथा साहित्य में पर्यावरणीय परिदृश्य एवं परिप्रेक्ष्य

इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक 

                                 पीएच.डी में हिंदी साहित्य विषय प्रवेश हेतु शोध- प्रस्ताव 

शोधार्थी 

देवकांत सिंह 

ऑनलाइन साक्षात्कार 

21 वी सदी के आदिवासी साहित्य में पर्यावरणीय परिदृश्य एवं परिप्रेक्ष्य

 अध्ययन की प्रासंगिकता 

आदिवासी का सामान्य अर्थ होता है मूल निवासी। लेकिन यही मूल निवासी आज समाज से दरकिनार कर दिए गए है और हासिये पर अपने अस्तित्त्व को  बचाने की गुहार लगा रहे है। पूँजीवादी शक्तियों ने उनसे उनकी जमीन छीन कर उन्हें विस्थापित होने पर  मजबूर किया। भारत देश में 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजाति की संख्या 8.6 है। आदिवासी जनजीवन में पर्यावरण का अत्यंत महत्त्व है। आज जब पर्यावरण इतना प्रदूषित हो चला है सामान्य जीवन के व्यक्ति अपने  संसाधनों का दोहन करने में लगे है वही आदिवासी जीवन इनके प्रति अपने लगाव और प्रकृति को पूज्य मानने उसका रक्षण करने से पर्यावरण को बचाने की कोशिश में अनवरत लगे हुए है। आदिवासी दर्शन को केंद्र में रखकर लिखा गया साहित्य भी अपने अस्तित्व को बचाने तथा पर्यावरण को उन व्यक्तियों से बचने की मांग कर रहा है जिनको पूजी से मतलब है पर्यावरण से नहीं वह अपने सिर्फ स्वार्थ तक निहित है।  'गायब होता देश'  उपन्यास में सोमेश्वर सिंह मुंडा का कथन है -
                                                                                                                              'अपने मूल में ही धन -समृद्धि और ताकत -वर्चस्व के खिलाफ है हमारी संस्कृति। प्रकृति से उतना ही लेना जितना हमारे समुदाय को जरुरत है  पीढ़ी को वैसी ही प्रकृति को बेहतर रूप में सौंप कर  जाए।'  

वृक्षों की कटाई ने वायुमंडल को इतना प्रभावित किया है की ओजोन परत निरंतर क्षतिग्रस्त होती जा है। सड़कों पर चल रहे परिवहन की अधिकता ने मनुष्य को साँस लेना तक मुश्किल कर दिया है नाइट्रस आक्साइड [NO2]जैसी गैसों ने तो और अधिक प्रभावित कर दिया है। साँस सम्बन्धी तथा कैंसर जैसी बीमारियों ने अपना- अपना कब्जा बना लिया है। देश की राजधानी दिल्ली में ऐसे हालत निरंतर आते रहते है की स्कूलों तक को बंद करना  पड़ जाता है। आदिवासी साहित्य दर्शन में जल ,जंगल ,जमीन को पूज्य  माना गया है। उनकी चेतना पर्यावरण को अनुकूल  रहने के पक्षधर है। 'कलम के तीर होने दो' कविता संग्रह से उदाहरण -

 'परेशान है दादी 
अपने समय के जंगल को यादकर 
जहाँ से चुन लाती थी अपने खोपा के लिए 
मकरंद के फूल 
बीमारी के लिए नाना प्रकार की 
घास  की जड़े।'  

शोध प्रविधि 

  • यह शोधकार्य आदिवासी जीवन और उसका पर्यावरण से सहसम्बन्ध पर आधारित होगा। जो की समाजशास्त्रीय और व्यावहारिक पद्यति का उपयोग इस शोधकार्य में किया जायेगा । 
  •   आदिवासी साहित्य के मूल में प्रकृति के साथ तादात्म्य को परत दर परत अवलोकन किया जायेगा।किस तरह इस से सिर्फ यह आदिवासी ही नहीं बल्कि पुरे समाज के लिए संकट की स्थिति उत्त्पन्न हो रही है और ऐसी ही दशा रही तो आगे कैसे भयावह परिणामों  से गुजरना पड़ सकता है। साहित्य के माध्यम से चित्रित किया जायेगा।  
  • इस शोध कार्य में साहित्य की कथा और काव्य विधाओं को सम्मिलत किया जायेगा। 
  • शोध प्रामाणिक तथ्यों पर आधारित होगा।

शोध प्रश्न 

  1. आदिवासी जीवन में पर्यावण का महत्त्व और सामान्य जनजीवन 
  2. भूमंडलीकरण का आदिवासी जीवन और पर्यावरण पर प्रभाव 
  3. हिंदी आदिवासी कविता में पर्यावरण के क्षति से प्रभावित जनजीवन 
  4. हिंदी आदिवासी उपन्यासों में पर्यावरण  के प्रति चेतना का अवलोकन 
  5. हिंदी आदिवासी कहानियों में आदिवासियों की स्थिति का मूल्यांकन 

विषय पर पूर्व में किये  शोध 

इस विषय  पूर्व में कोई भी शोधकार्य  नहीं किया गया। आदिवासी साहित्य से सम्बंधित कुछ शोधकार्य  
  1. स्वतंत्रोत्तर हिंदी उपन्यास साहित्य में आदिवासी जीवन -रमेशचंद्र मीणा ,-पुरुषोत्तम अग्रवाल 1997 जवाहलाल नेहरू विश्वविद्यालय 
  2. आदिवासी केंद्रित हिंदी उपन्यासों में मिथक एवं यथार्थ -बबलू यादव -आशुतोष कुमार सिंह 2018 ,इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय 
  3. समकालीन हिंदी उपन्यासों में आदिवासी जीवन का समाजशास्त्रीय अध्ययन ,संदर्भ इक्कीसवी सदी के आदिवासी हिंदी उपन्यास -अमित कुमार शाह -रेनू सिंह ,2018- इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय 
  4. हिंदी के प्रमुख  उपन्यासों में आदिवासी समाज विकास एवं विस्थापन विशेष संदर्भ ,1990 से 2015-योगेश कुमार तिवारी -खेम सिंह डेहरिया -2018 -इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय 
  5. 21 वि सदी के हिंदी उपन्यासों में अभिव्यक्त आदिवासी  अस्तित्व का संकट व्  के स्वर ,विशेष संदर्भ -2000 से 2015  तक -प्रियंका गौंड - स्नेहलता नेगी -2018 -दिल्ली विश्वविद्यालय 
  6.  आदिवासी हिंदी कविताओं का सौंदर्यबोध -नवनीत कुमार -आशुतोष कुमार ,2018 -दिल्ली विश्वविद्यालय 

 सहायक ग्रंथ 

  1. ग्लोबल गांव का देवता -रणेन्द्र ,प्रथम संस्करण ,ज्ञानपीठ प्रकाशन -2009  
  2.  गायब होता देश -रणेंद्र ,प्रथम संस्करण ,पेंगुइन प्रकाशन -2014 
  3.  कलम का तीर होने दो -झारखण्ड के हिंदी  आदिवासी कवि ,प्रथम संस्करण -2015 
  4. मरंग  गोड़ा नीलकंठ हुआ -महुआ माँझी ,प्रथम संस्करण -2012 
  5. रह गई दिशाय इसी पार -संजीव 
  6. धार -संजीव,प्रथम संस्करण -राधाकृष्ण प्रकाशन -2018   
  7. जंगल जहा शुरू होता है -संजीव 
  8. आदिवासी स्वर और नई शताब्दी -डॉ रमणिका गुप्ता 
  9. आदिवासी साहित्य विमर्श;चुनौतियाँ और संभावनाएं  -गंगा सहाय मीणा 

हिंदी साहित्य में किन्नर विमर्श -एक पूर्वपीठिका  साहित्य किसी भी स्थिति की तहों में जाकर समाज का सरोकार उन विमर्शो और मुद्दों से करता है जिस...