कोरोना में रोना -एक विवेचना

कोरोना में रोना -एक विवेचना 




कोरोना एक ऐसी महामारी है  जिसने मनुष्यता की कड़ी से कड़ी परीक्षा लेना शुरू कर दिया। जहाँ पूरा विश्व इस महामारी से त्रस्त है वही मनुष्यता की भी उतनी  कड़ी परीक्षा है। इस समय किसी भी जाति ,वर्ग ,लिंग ,क्षेत्र कोई भी ऐसा नहीं जहाँ लोग इस महामारी से त्रस्त न हो। इस महामारी ने सभी लोगों को घर के अंदर रहने पर मजबूर कर दिया है। ऐसे में आप एक प्रवासी मजदूर  की व्यथा भी समझ सकते है।उसे खाने, रहने जैसा कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।  वह इस इंतजार में है की कब यह लॉकडाउन  हटे  वह अपनी घर के लोगों से मिल सके।इसी जल्दबाजी के चक्कर में वह कई अन्य लोगों को भी खतरे में डाल रहे है। दिल्ली में आनंद विहार बस अड्डे पर भीड़ एक ऐसा ही उद्धरण है। कई जगह ये लोग पैदल ही अपने गाँव तक जाना चाहते है। उनके घरवालों को दिन रात उनकी चिंता रहती है की वह वहां कैसे रहेंगे। लेकिन इस कठिन परिस्थितियों में भी आपको धैर्य की आवश्यकता है। सरकार अपनी तरफ से पूर्णतः प्रयासरत है की किसी को भी कोई दिक्कत न हो।
समय के ऐसे मार में कई लोगों की शादियाँ भी रुकी। जिन्होंने मार्च और अप्रैल में उन्होंने जो सपने सजोये उन्हें कुछ विराम की आवश्यकता है। आप यादों द्वारा अपना दो -तीन  महीने को बिता सकते हो। प्रेमिकाओं की दशा उर्मिला सी हो गई है। मगर आप लोगों को 14 वर्ष दूर नहीं रखा जायेगा। आप अपने धैर्य से आसानी से इस समय को बिता सकते है। आप जितना अपने धैर्य को बनाये रखेंगे उतनी ही जल्दी आपको मिलने का मौका मिलेगा। इसलिए आप आराम से घर में रहिये। 
मैथिलीशरण गुप्त ने  महाकाव्य लिखा 'साकेत' उसके 'नवम सर्ग' जो उर्मिला के विरह पर आधारित है। उसमे उर्मिला का दर्द झलकता है। 
"आठ पहर चौषठ घड़ियाँ स्वामी का ही ध्यान रहे।" 

ये हुई प्रेम की बात जिसे श्रृंगार रस , अब वात्सल्य का भी नजारा देखे। 'कोरोना में रोना' एक ऐसे ही माँ के प्रति बेटे के प्रेम पर आधारित है। जिसकी लेखिका 'तानिया शर्मा' है। इसे लेख कहे या आत्मकथ्य इस पर सोचा जा सकता है। वास्तविकता को उन्होंने कलात्मक ढंग प्रस्तुत किया है जहाँ उनकी स्वानुभूति शब्दबद्ध  होकर रचना को जीवंत करते हुई पाठक को भी प्रभावित करती है। लेखिका ने सरल भाषा में ही अपने समय को प्रदर्शित करती है। उन्होंने जब यह लेख मुझे भेजा तब मुझे आश्चर्य हुआ कि एक प्रेम की  कविता लिखने वाली लेखिका ने अपना कलम लेख की तरफ कैसे मोड़ लिया। यह कहानी एक 'देवन्द्र शर्मा' की है जो अपने माता के मृत्यु पर घर नहीं जा सके। जिसने उन्हें जन्म दिया और सदैव उन्होंने अपने बच्चे का साथ दिया वह आज उनसे मिलने तक नहीं जा सका। महामारी की ऐसी मार है जो उन्हें सदैव इस बात को सोचने पर मज़बूरी करेगा।वह अंतिम समय में भी अपनी माँ से नहीं मिल पाए।  
एक नयी कहानीकार या लेखक को उभारने के लिए आपको इस लेख ,आत्मकथ्य ,कहानी जो भी हो समझ कर पढ़ो हो सकता है आपको इसमें वह घटना न मिले जिसकी आपको उम्मीद हो। लेकिन आप यह लेख अवश्य पढ़ना चाहिए। 15 से 20 मिनट में आप इसे पढ़ सकते है। 
hitlertaniyasharma.blogspot.com इस पर आप इनका लेख  सकते है। 

मेरा ब्लॉग -mukandpr.blogspot.com
आप लोग इस कठिन समय में सरकार का साथ दीजिए। मानव के साथ पशुओ का भी ध्यान रखिये। पढ़ने के लिए भी यह समय सबसे अधिक उचित है उसका सार्थक उपयोग करे। 

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