डॉ. कमलकिशोर गोयनका ने प्रेमचंद को भारतीयता से जोड़कर भारतीय चिंतन परंपरा में व्याख्यायित किया है।
प्रेमचंद ने बार-बार भारतीयों को सनातन संस्कृति पर चलने की सीख दी लेकिन प्रेमचंद के मूल्यांकन में इन चीजों को शामिल नहीं किया जाता है।
प्रेमचंद पर कब तक काफी लिखा-पढ़ा गया है, लेकिन डॉ.
लेखक ने भारतीय जीवनादर्शों एवं मूल्यों की तुलना में पाश्चात्य जीवनादर्शों एवं मूल्यों को हीन और निम्नकोटि का मानते हुए भारतीय मूल्यों की स्थापना की हैं।23
इस उपन्यास में प्रेमचंद ने मुख्यतः किसानों औऱ जमींदारों के प्रश्न को उठाया है, परन्तु इसमें इन दोनों वर्गों से संबंधित अन्य व्यवसायों तथा निहित स्वार्थों के लोगों का भी चित्रण हुआ है।24
पश्चिमी जीवन दृष्टि , संस्कार और मूल्यों की अनिष्टकरिता और भारतीय जीवन-दृष्टि , संस्कार और मूल्यों की श्रेष्ठता दिखाना ही लेखक का उद्देश्य रहा है। 28
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