'मुक्तिबोध की आत्मकथा' और 'निराला की आत्मकथा' -आत्मकथा या जीवनी

'मुक्तिबोध की आत्मकथा' और 'निराला की आत्मकथा' -आत्मकथा या जीवनी


DEVKANT SINGH
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आत्मकथा और जीवनी में एक साधारणतः अंतर होता है की आत्मकथा व्यक्ति द्वारा खुद लिखा  जाता  है। वही जीवनी किसी अन्य व्यक्ति द्वारा। आत्मकथा लिखना अधिक कठिन कार्य है। इसमें आत्मकथा लेखक को तटस्थता बरतनी पड़ती है। कई ऐसे रहस्यों का उजागर करना होता है जिसे उजागर करना अत्यंत  पीड़ा से भरा कार्य होता है। कई रहस्य ऐसे भी होते है जिस से वो समाज के नजरो में गिर भी सकते है। उस पर दोहरे मत आने लग जाते है की ऐसा करना सही था या गलत। आत्मकथा तभी पाठक को प्रभावित करती है जो लेखक के वास्तिविक जीवन को उजागर करे न की कोरी कल्पनाओं और अभिलाषाओ जो अब तक पूरी न हुई हो। आत्मकथा में उन छोटी बड़ी घटनाओं को लिया जा सकता है जिस से पाठक को मनोरंजन के साथ ज्ञान की भी प्राप्ति हो। 
साहित्य कल्पना पर आधारित होता है जबकि कुछ विधा कल्पनाओं के बिना ही रची जाती है। उनमे कल्पना का समावेश करने से उन विधाओं की मान्यताओं पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है अगर उनका सरोकार वास्तविक घटनाओं से न रहा तब वह  विधा  पाठक को सम्मोहित करने में असमर्थ रहेगी ऐसी ही विधाओं  में जीवनी और आत्मकथा आती  है। आत्मकथा में जहाँ कई जगह लेखक अपने व्यक्तित्व को अच्छा दिखाने के लिए जरुरी चीजों का समावेश छोड़ देता है जबकि जीवनी  विशेष के सभी चीजों का चित्रण करती है। आत्मकथा के साथ जीवनी में भी अधिक समस्या होती है इसमें व्यक्ति के बारे में लिखा कैसे जाए। इसके लिए लेखक उसके जीवन का अध्यन करता है उसके मित्रों से मिलता है ,घरवालों से मिलता है ,उनके साहित्यिक ग्रंथों  का विशेष अध्ययन  करता है अगर उनके ऊपर अन्य जीवनी लिखी गई है तो उसका भी अध्ययन  और यह जीवनी उस जीवनी से कैसे अलग होगी ऐसे क्या आवश्यक चीजे छूटी है जो जीवनी में होना चाहिए। जीवनी व्यक्ति के अंतर्मन के अंदर नहीं झाँक सकती  वह बाहरी स्रोतों से ही निर्मित होती है। किसी व्यक्ति के करीब रहने वालो में उनकी पत्नी होती है। हिंदी साहित्य के अंतर्गत यह स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है की पत्नियों द्वारा कई जीवनियाँ लिखी जा रही है। 
प्रेमचंद घर में -शिवरानी देवी 
कमलेश्वर मेरे हमसफ़र -गायत्री कमलेश्वर 
स्मृति के झरोखे -बिंदु अग्रवाल 
महामना महापंडित (राहुल सांकृत्यायन )-कमला सांकृत्यायन 
उत्सव पुरुष नरेश मेहता -महिमा मेहता 
रांगेय राघव एक अंतरंग परिचय-सुलोचना रांगेय 

कुछ जीवनियाँ उनके पुत्र द्वारा लिखी जाती है। --

कलम  का सिपाही -अमृतराय 
बाबूजी (नागार्जुन )-शोभा कांत

जीवनी में प्रमाणिकता तो तथ्यों को सही प्रकार से संग्रह करके अपने शब्दों में लिखना होता है। घटनाए वही रहेंगी उन्हें किस जगह किन शब्दों का प्रयोग करके लाया जाय यह जीवनीकार के ऊपर होता है। वह अपनी रचनात्मक कला द्वारा जीवनी साहित्य का सृजन करता है। अब ऐसे में जहाँ जीवनी में अपने शब्दों और अपनी रचनात्मक को लेखक न दिखाकर वह व्यक्ति विशिष्ट जिस पर जीवनी लिख रहा है। उसके द्वारा लिखी गई चीजों को एक जगह संग्रहित कर दे उसे क्या कहा जाय ? यह प्रश्न सोचनीय है क्योंकि आत्मकथा की एक यह आम धारणा  है की व्यक्ति खुद से ही आत्मकथा लिखता है। जब आत्मकथा स्वयं  आत्मकथा के रूप में न लिखी जाय और किसी व्यक्ति द्वारा उन सभी तथ्यों को खंगाल कर सम्पादित किया जाये अपने शब्दों को उसमे न पिरोया जाये उसे क्या कहा जायेगा ?
निराला की आत्मकथा सूर्य प्रसाद दीक्षित ने लिखी। उसमे उन्होंने कहा है -
                                                                                                             "यह आत्मकथा विशुद्ध रूप से निराला जी द्वारा ही विरचित है।  इसकी एक भी पंक्ति मेरी नहीं है। शीर्षक चयन भी निराला -साहित्य से ही किया गया है। आत्मकथा से सम्बंधित ये अंश निराला की कविताओं ,संस्मरणों ,कहानियों ,उपन्यासों ,निबंधों एवं भूमिकाओं से गृहीत है। कहीं -कहीं उनके समर्पण ,सम्पादकीय प्रकाशित पत्रों का भी उपयोग किया गया है।"

'संस्मरण में है आज -जीवन' रचना के भूमिका में उनके पुत्र ने लिखा है -

                                                                                                          "निराला के आत्मकथा के लिए उनके साहित्य मंथन से उनके आत्मकथाओं को संकलित करने का प्रथम प्रयास डॉ. सूर्यप्रसाद दीक्षित जी के द्वारा हुआ। श्री दीक्षित ने निराला जी के आत्म -संस्मरणों ,कथ्यों एवं आत्मपरक वृतांत का चयन करके उन्हें सुसंयोजित ढंग से क्रमबंध कर निराला की आत्मकथा के रूप में प्रस्तुतीकरण किया इसके लिए मैं उनका हृदय से आभारी हूँ।"

इस से यह स्पष्ट  है की निराला की आत्मकथा ,मुक्तिबोध की आत्मकथा ,एक प्रकार से आत्मकथा में नया प्रयोग है। इस प्रकार के प्रयोग आगे भी होते रहेंगे और वह हिंदी साहित्य की आत्मकथा का और विस्तार करेगी। जो लेखक के देहांत के बाद भी लिखे जा सकेंगे। 

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