अँधा युग - धर्मवीर भारती
धर्मवीर भारती का जन्म -1926
अँधा युग -1954
कहानी संग्रह -
- मुर्दो का गाँव -1946
- चाँद और टूटे हुए लोग -1955
- बंद गली का आखिरी मकान -1969
निबंध
- ठेले पर हिमालय -1958
- पश्यन्ति-1969
- कहानी -अनकहनी -1970
- मुक्तक्षेत्रे :युद्धक्षेत्र-1971
मुक्तक कविता
- ठंडा लोहा -1952
- सात गीत वर्ष-1959
प्रबंध काव्य
खण्ड काव्य
- कनुप्रिया -1969
आलोचना
- प्रगतिवाद एक समीक्षा -1949
- मानव मूल्य और साहित्य -1960
एकांकी संकलन
- नदी प्यासी थी -1954
उपन्यास
- गुनाहों का देवता -1949
- सूरज का सातवा घोड़ा -1952
शोध
- सिद्ध साहित्य -1955
अनुवाद
- आस्कर वाइल्ड की कहानियाँ 1956
- देशांतर - समकालीन विदेशी कविता का संग्रह -1980
सहयोगी लेखन
- ग्यारह सपनो का देश -1960
धर्मवीर भारती के जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
- एम. ए में आने पर इन्होंने श्री पद्मकांत मालवीय के पत्र अभुदय में अंश कालीन आधार पर कार्य किया।
- 1948 में वे इलाचंद्र जोशी के पत्र संगम में सह -संपादक नियुक्त हुए। इस रूप में दो वर्ष कार्य करते रहे।
- इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1960 ई. तक हिंदी विभाग में प्राध्यापक के रूप में नियुक्त रहे।
- 1960 ई. में इन्होंने अध्यापन कार्य छोड़कर धर्मयुग पत्रिका का प्रधान संपादक का दायित्व स्वीकार किया।
- 1961ई. में ये कॉमन -वैल्थ के आमंत्रण पर इंग्लैण्ड तथा यूरोप के अन्य देशो की यात्रा पर गए।
- 1972 ई. में इन्हें इनकी विशिष्ट साहित्यक उपलब्धियों के लिए भारतीय सरकार द्वारा पद्म श्री उपाधि से सम्मानित किया गया किया गया।
अँधा युग
- इस दृश्य काव्य में जिन समस्याओं को उठाया गया है , उसके सफल निर्वाह के लिए महाभारत के उत्तरार्द्ध की घटनाओं का आश्रय ग्रहण किया गया है। अधिकतर कथावस्तु प्रख्यात है , केवल तत्व उत्पाद्य है -कुछ स्वकल्पित पात्र कुछ स्वकल्पित घटनाएँ। प्राचीन पद्धति भी देती है। अंधायुग -निर्देश
स्थापना
स्थापना में पुरानी कथा की नयी व्याख्या के प्रति सामान्य जिज्ञासा उत्त्पन्न होती है।
कौरव नगरी
पहला अंक - पहले अंक में उद्घाटन से पूर्व -कथा का ज्ञान होता हैऔर संजय द्वारा लाय जाने वाले युद्ध समाचार के प्रति हल्की सी उत्सुकता जागती है।
पशु उदय
दूसरा अंक - दूसरे अंक में अश्वत्थामा का एकालाप रोचक है क्योंकि वह अश्वत्थामा के चरित्र और उसके भावी संघर्ष को निश्चित करने वाली आंतरिक प्रेरणा अथवा कुंठा की नाटकीयता जानकारी देता है। वृद्ध की हत्या में कार्य व्यापार तीव्रता ग्रहण करता है।
अश्वत्थामा का अर्द्धसत्य
तीसरा अंक - तीसरे अंक में दैत्याकार योद्धा के मायावी रूप , युयुत्सु -गांधारी प्रसंग की विडंबना , गूंगे सैनिक के करुण -त्रासद प्रसंग , दुर्योधन -भीम के द्वन्द युद्ध के परिणाम के प्रति दर्शक पाठक का कुतूहल निरंतर बढ़ता रहता है जो अश्वत्थामा द्वारा अर्द्धसत्य की प्राप्ति तथा उसकी प्रतिशोध -प्रतिज्ञा के साथ अपने चरम पर पहुँच जाता है।
पंख , पहिये और पट्टियां
अंतराल - अंतराल में प्रेतलोक के से वातावरण और वृद्ध याचक के संवाद में विचित्रता के कारन रूचि पैदा होती है ,किन्तु युयुत्सु , विदुर तथा संजय की सपाट व्याख्याओं से वह तत्काल ही समाप्त भी हो जाती है।
गांधारी का शाप
चौथा अंक - चौथे अंक के आरम्भ में गांधारी के पाषाणी रूप से दर्शक प्रभावित होता है किन्तु संजय विदुर के संवादों द्वारा अश्वत्थामा के प्रतिशोध के जीवंत वर्णन भी दृश्य के आभाव के कारण दर्शक को पूरी तरह बाँधे रखने में सफल नहीं हो पाते। संजय की माता में दृश्य की जिज्ञासा है जबकि तरपान यात्रा में कोई रोचकता नहीं है। परन्तु तत्काल अश्वत्थामा और अर्जुन के ब्रह्मस्त्र युद्ध से क्रिया व्यापार तीव्र हो उठता है। दुर्योधन के कंकाल तथा अश्वत्थामा के प्रति कृष्ण के अन्याय के विरुद्ध गांधारी के शाप पर नाटक का कार्य -व्यापार अपनी सीमा पर स्पर्श कर लेता है।
विजय एक क्रमिक आत्महत्या
पाँचवा अंक -पांचवे अंक में युधिष्ठिर की चिंता , तत्कालीन राजनितिक स्थिति का वर्णन , युयुत्सु का आत्मघात , धृतराष्ट तथा गांधारी का आत्मदाह लगभग विवरणात्मक ही है।
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