स्कंदगुप्त -1928

स्कंदगुप्त -1928 

जयशंकरप्रसाद 

पात्र 

  • स्कंदगुप्त -युवराज (विक्रमादित्य )
  • कुमार गुप्त -मगध का सम्राट 
  • गोविन्दगुप्त -कुमारगुप्त का भाई 
  • पर्णदत्त -मगध का महानायक 
  • चक्रपालित -पर्णदत्त का पुत्र 
  • बंधू वर्मा -मालवा का राजा 
  • भीमवर्मा -बंधुवर्मा का भाई 
  • मातृगुप्त -काव्यकर्ता कालिदास 
  • प्रपंच बुद्धि -बौद्ध कापालिक 
  • शर्वनाग -अंतर्वेद का विषयपति 
  • कुमारदास (धातुसेन )-सिंघल का राजकुमार 
  • पुरगुप्त -कुमारगुप्त का छोटा पुत्र 
  • भटार्क - नवीन महाबलाधिकृत 
  • पृथ्वीसेन -मंत्री कुमारामात्य 
  • खिगिल -हूण आक्रमणकारी 
  • मृदुगल -विदूषक 
  • प्रख्यातकीर्ति -लंकारज कुल का श्रमण ,महाबोध विहार -स्थविर 
अधिकार सुख कितना मादक और सारहीन है। अपने को नियामक और कर्त्ता समझने की बलवती स्पृहा उससे बेगार करवाती है। 

स्त्री पात्र 
  • देवकी -कुमारगुप्त की बड़ी रानी ,स्कन्द की माता 
  • अनन्तदेवी -कुमारगुप्त की छोटी रानी पुरगुप्त की माता 
  • जयमाला -बंधुवर्मा की स्त्री ,मालवा की रानी 
  • देवसेना -बंधुवर्मा की बहन 
  • विजया -मालवा के धनकुबेर की कन्या 
  • कमला -भटार्क की जननी 
  • रामा -शर्वनाग की स्त्री 
  • मालिनी -मातृगुप्त की प्रणयनी 
मुख्य कथन 
  • राष्ट्रनीति ,दार्शनिकता और कल्पना  लोक नहीं है।  इस कठोर प्रत्यक्षवाद की समस्या बड़ी कठिन  है। -पर्णदत्त ,स्कंदगुप्त से 
  • शरणागत -रक्षा भी क्षत्रिय का धर्म है। -स्कंदगुप्त ,दूत से 
  • युद्ध करना ही पड़ता है। अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए ये आवश्यक है -कुमारगुप्त ,धातुसेन से 
  • कविता करना अत्यंत पुण्य का फल है। -मातृगुप्त ,स्वयं से 
  • कवित्य -वर्णमय चित्र है। जो स्वर्गीय भावपूर्ण संगीत गया करता है। अंधकार का अलोक से ,असत का सत्य से ,जड़ का चेतन से और वाह्य जगत का अंतर जगत से सम्बन्ध कौन कराती है ?कविता ही न ?-मातृगुप्त ,मुदगल से
  • धर्म को बचाने के लिए तुम्हे राजभक्ति की आवश्यकता हुई। धर्म इतना निर्बल  है की वह पाशव बल के द्वारा सुरक्षित होगा। -धातुसेन ,ब्राम्हण से 
  • जो अपने कर्मो को ईश्वर का कर्म समझकर करता है ,वही ईश्वर का अवतार है। -कमला ,स्कंदगुप्त से 
  • आवश्यकता ही संसार के व्यवहारों की दलाल है। -विजया ,मृदुगल से 
  • कष्ट ह्रदय की कसौटी है ,तपस्या अग्नि है। -देवसेना ,स्कंदगुप्त से 
  • अपनी घोर आवश्यकताओं में कृत्रिमता बढ़ाकर ,सभ्य और पशु से कुछ उच्चा द्विपद मनुष्य पशु बनने से बच जाता है। -मृदुगल ,मातृगुप्त से 

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