देवरानी जेठानी की कहानी- पंडित गौरी दत्त

गौरीदत्त का जन्म -1836 
देवरानी जेठानी  की कहानी -1870 

गोपाल राय ने पंडित गौरीदत्त के इस उपन्यास को प्रकाशन वर्ष 1870 के हिसाब से हिंदी का पहला उपन्यास माना है  इस उपन्यास में तात्कालिक समाज जीवंत हो उठता है मसलन बाल विवाह , विवाह में फिजूलखर्ची ,स्त्रियों की आभूषण प्रियता, बटवारा वृद्धजनों की समस्याएं स्त्री शिक्षा जैसे सामाजिक मुद्दों के चित्रण में यह उपन्यास कभी नहीं चूकता।      

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 देवरानी जेठानी की कहानी  उपन्यास के प्रमुख पात्र                                    

  1. सर्व सुख मुंशी
  2.  टिकट नारायण                                                                                  
  3.  हरसहाय काबली 
  4. पार्वती
  5.  सुखदेव
  6.  दौलत राम 
  7. छोटेलाल

सर्वप्रथम यह उपन्यास 1870 ई में मेरठ के एक लिथोप्रेस  'छापाखाना ए जीयाई' में प्रकाशित हुआ और इसकी 500 कृतियां प्रकाशित की गई थी और मूल्य केवल 12 आने था। 

 गोपाल राय ने  देवरानी जेठानी की कहानी को हिंदी साहित्य का प्रथम उपन्यास माना है। 

 छोटे आकार क्राउन  साइज के मात्र 35 पृष्ठों की इस छोटी-सी औपन्यासिक कृति  में तत्कालीन सामाजिक समस्याओं को इतने सूक्ष्म दृष्टि से इतने बहुआयामी रूप में संदर्भित किया गया है कि हिंदी के प्रथम उपन्यास में ही यह  कौशल देखकर आश्चर्य होता है।  बाल विवाह,  विवाह में फिजूलखर्ची, स्त्रियों की आभूषण प्रियता की वृत्ति , परिवार में अलगौझा  की समस्या के साथ बड़े कौशल के साथ नारी शिक्षा के साथ अन्तर्ग्रहीत  है। 

 जब सांयकाल   को सारे दिन का हारा थका  घर आता ,नून -तेल का झींकना  ले बैठती।  कभी कहती मुझे गहना बना दो ,रोती -झींकती ,लड़ती भिड़ती।  उसे रोटी न करके देती। कहती की फैलाने की  बहू को देख,गहने में लद  रही है। उसका मालिक नित नयी  चीज लावे है मेरे तो घर में आकर भाग फूट गए वह कहता  जाने भगवान रोटियों की क्यों कर गुजारा कर रहे हैं तुझे गहने - पाते की सूझ रही है। 

इसकी रोचकता और समाज सुधार की दृष्टि से ही प्रभावित हो पश्चिम देशाधिकारी श्री लेफ्टिनेंट गवर्नर बहादुर ने 24 जून 1870 के पत्र द्वारा पंडित गौरीदत्त को ₹100 के पुरस्कार से प्रोत्साहित किया। 

  बच्चन सिंह ने अपनी 'हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास '  में देवरानी जेठानी की कहानी वामा शिक्षक और भाग्यवती के साथ रखकर इसे  'स्त्री जनोचित शिक्षा' ग्रन्थ  कहकर चलता कर देते हैं इसमें औपन्यासिकता  का अभाव देखते हैं। 

हिंदी भाषा और उसका विकास

प्रश्न 1- हिंदी दिवस कब मनाया जाता है ?
  1. 15 सितंबर 
  2. 11 नवंबर 
  3. 14 नवंबर
  4.  14 सितंबर 
प्रश्न २ -भारतीय संविधान के किस भाग में भाषा से संबंधित नियम है ?
  1. 12
  2.  17 
  3. 22 
प्रश्न3  -विश्व हिंदी दिवस कब मनाया जाता है ?
  1. 10 जनवरी 
  2. 30 जनवरी 
  3. 22 फरवरी 
  4. 22 मार्च 
प्रश्न 4- संविधान की किस अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है ?
  1. 12 
  2. 17 
  3. 22 
प्रश्न 5- आठवीं अनुसूची में किसे भाषा को सम्मिलित नहीं किया गया? 
  1. मैथिली 
  2. मालवी
  3. मलयालम
  4.  मणिपुरी 
प्रश्न6 - आठवीं अनुसूची में किस भाषा को सम्मिलित नहीं किया गया ?
  1. कन्नड़ 
  2. कन्नौजी 
  3. कश्मीरी
  4.  कोंकड़ी 
प्रश्न7 - आठवीं अनुसूची में किस भाषा को सम्मिलित नहीं किया गया?
  1.  अंग्रेजी 
  2. उर्दू  
  3.  संस्कृत
  4.   हिंदी
 प्रश्न8 - सिंधी भाषा को आठवीं अनुसूची में किस संशोधन द्वारा सम्मिलित किया गया?
  1.  21 वा 
  2. 42 वा 
  3. 71 वा 
  4. 92वा  
प्रश्न9 - 71वां संविधान संशोधन में किस भाषा को नहीं जोड़ा गया ?
  1.  कोंकणी
  2.  संथाली 
  3. मणिपुरी
  4.  नेपाली
 प्रश्न10 -92 वा संविधान संशोधन में किस भाषा को नहीं जोड़ा गया ?
  1.  बोडो 
  2. बांगरू 
  3. डोगरी
  4.  मैथिली
प्रश्न11 -इनमें से कौन सी बोली बिहारी हिंदी वर्ग में नहीं आती है 
  1. भोजपुरी
  2. मैथिली
  3.  छत्तीसगढ़ी
  4. मगही   
 प्रश्न12 - निम्नलिखित में से पश्चिमी हिंदी की बोली नहीं है
  1.  ब्रजभाषा
  2. कन्नौजी
  3.  बुंदेली 
  4. मगही 
प्रश्न13 -निम्नलिखित में से किस भाषा का विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ 
  1. गुजराती 
  2. पंजाबी
  3.  मराठी 
  4. सिंधी 
प्रश्न14 -इनमें से किस बोली  का बिहारी हिंदी से संबंध नहीं है 
  1. अवधी  
  2. मगही 
  3. भोजपुरी 
  4. मैथिली
प्रश्न15 -पश्चिमी हिंदी की दो बोलियां का सही युग्म है
  1.  कन्नौजी- अवधी
  2.  ब्रज- बघेली
  3.  छत्तीसगढ़ी- बांगरू
  4.  खड़ी बोली- बुंदेली 
प्रश्न16 -अर्द्धमागधी अपभ्रंश  से विकसित बोली है?
  1.  बांगरू
  2.  बघेली 
  3. ब्रजभाषा 
  4. भोजपुरी 
प्रश्न17 -निम्नलिखित में से किस भाषा को संविधान के अष्टम सूची में सम्मिलित नहीं किया गया है ?
  1. डोगरी
  2.  मणिपुरी
  3.  मैथिली
  4.  छत्तीसगढ़ी 
प्रश्न18 -अवधी भाषा का विकास किस अपभ्रंश से हुआ है  
  1. महाराष्ट्रीय 
  2.  शौरसेनी 
  3. अर्द्धमागधी 
  4. मागधी 
प्रश्न 19 - इनमें से किस को संविधान के अष्टम अनुसूची में सम्मिलित नहीं किया गया
  1.  डोगरी
  2.  मैथिली 
  3.  ब्रज 
  4. असमिया
प्रश्न20 -भाषा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के किस धातु से हुई है?
  1. भाष 
  2. भव 
  3. भाषात 
  4. इनमे से कोई नहीं 
  
 प्रश्न21 -  हिंदी की उत्पत्ति किस अपभ्रंश से मानी जाती है?
  1.  मागधी  
  2. शौरसेनी  
  3. ब्राचड़  
  4. खस
प्रश्न22 -निम्न  भाषाओं के कालक्रम  के अनुसार कौन सा विकल्प सही है 
  1. संस्कृत, पाली , प्राकृत ,अपभ्रंश
  2.  पाली, संस्कृत, अपभ्रंश,  प्राकृत
  3.  अपभ्रंश ,पाली ,प्राकृत ,संस्कृत 
  4. अपभ्रंश, प्राकृत, पाली, संस्कृत 
प्रश्न23-खड़ी बोली का एक अन्य नाम क्या है?
  1.  कोरवी 
  2. कन्नौजी
  3.  बांगरू
  4.  कुमाऊनी 
प्रश्न24-मेरठ, सहारनपुर, बिजनौर, किस बोली के क्षेत्र में आते हैं?
  1.  खड़ी बोली 
  2. ब्रजभाषा 
  3. कन्नौजी 
  4. अवधि 
प्रश्न25 - इनमें से कौन सी राजस्थान की बोली नहीं है 
  1. मारवाड़ी 
  2. बुंदेली
  3.  मेवाती
  4.  मालवी
प्रश्न26 - इनमें से कौन -सी पश्चिमी हिंदी की बोली नहीं है
  1.  ब्रजभाषा 
  2. बघेली
  3.  कन्नौजी
  4.  बुंदेली
प्रश्न27 - 'सिंधी' भाषा का विकास किस अपभ्रंश से हुआ है
  1.  ब्राचड़ 
  2. पैशाची 
  3. शौरसेनी 
  4. मागधी 

प्रश्न28 - राजभाषा अधिनियम  'क' वर्ग में कौन- सा एक राज्य नहीं है?
  1.  पंजाब
  2.  उत्तर प्रदेश
  3.  मध्य प्रदेश
  4.  हरियाणा
प्रश्न29 - इनमें से कौन- सा हिंदी भाषी राज्य नहीं है?
  1.  पंजाब
  2.  हरियाणा 
  3. राजस्थान
  4.  दिल्ली
प्रश्न30 -किस अनुच्छेद में वर्णित है कि जब तक संसद विधि द्वारा उपबंध ना करें तब तक उच्चतम न्यायालय तथा प्रत्येक उच्च न्यायालय मेरे सब तरह की कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होगी ?
  1. अनुच्छेद 342
  2.  अनुच्छेद 344
  3.  अनुच्छेद 346 
  4. अनुच्छेद 348 
प्रश्न31 -भारतीय संविधान ने हिंदी को कब मान्यता प्रदान की ?
  1. 14 सितंबर 1948 
  2. 14 सितंबर 1949
  3.  14 सितंबर 1950
  4.  12 सितंबर 1949
प्रश्न 32 -राजभाषा आयोग ,1955 के अनुसार निम्नलिखित सुझाव दिए गए है। 
A -हिंदी  सर्वाधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है ,यही सारे भारत का एक माध्यम हो। 
b -चौदह वर्ष की उम्र तक भारत के प्रत्येक विद्यार्थी को हिंदी का ज्ञान करा देना चाहिए। 
c -भारत सर्कार के प्रकाशन अधिक से अधिक अंग्रेजी में किये जाये। 
d -उच्च न्यायलय में क्षेत्रीय भाषाओं का व्यव्हार होना चाहिए। 

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए -
  1. a,b,c
  2. a,b,d
  3. b,c,d
  4. a,c,d
प्रश्न 33 -निम्नलिखित में तालव्य वर्ण है -
a -च 
b -त 
c -ट 
d -ज

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए -
  1. a,b,c
  2. b,c,d
  3. a,c,d
  4. a,,d
प्रश्न 34 -निम्नलिखित में कौन -सा शब्द तद्भव नहीं है ?
  1. काज 
  2. आखर 
  3. कान 
  4. वायु 
प्रश्न 35 -निम्नलिखित में से कौन -सा शब्द यौगिक है ,रूढ़ नहीं ?
  1. जलद 
  2. नाक 
  3. कान 
  4. पर 
प्रश्न 36 -निम्नलिखित भाषाओं को विकास के उनके क्रम में व्यवस्थित कीजिये। 
a -शौरसेनी 
b -पहली प्राकृत 
c -वर्तमान हिंदी 
d -पूर्वी हिंदी 

नीचे दिए विकल्पों में सही उत्तर चुनिए -
  1. a,b,c,d
  2. b,a,d,c
  3. d,a,b,c
  4. c,a,b,d
प्रश्न 37 -तारीख निम्नलिखित में से किस भाषा का मूल शब्द है ?
  1. पोर्चुगीज 
  2. अरबी 
  3. तुर्की 
  4. हिंदी 
प्रश्न 38 -निम्नलिखित में से कौन -सी भाषा  आर्यभाषाओं में शामिल नहीं है ?
  1. संस्कृत 
  2. प्राकृत 
  3. तुर्की 
  4. अंग्रेजी 
प्रश्न 39 -निम्नलिखित में से कौन -सा शब्द फ़ारसी का है -
  1. दाग 
  2. औरत 
  3. नीलम 
  4. फीस 
प्रश्न 40  -निम्नलिखित भाषाओं को विकास के उनके क्रम में व्यवस्थित कीजिये। 
a -प्राचीन संस्कृत 
b -शौरसेनी  
c -लौकिक संस्कृत  
d -पश्चिमी हिंदी  

नीचे दिए विकल्पों में सही उत्तर चुनिए -
  1. a,,c,b ,d
  2. a,b,c,d
  3. b,c,a,d
  4. c,d,a,b
प्रश्न 41 -निम्नलिखित में दन्त्य वर्ण है -
a -ड 
b -ढ 
c -द 
d -ध 

नीचे दिए गए विकल्पों में सही उत्तर चुनिए 
  1. a,b,c
  2. b,c,d
  3. a,b,d
  4. c,d
प्रश्न 42 -हिंदी शब्दानुशासन के रचनाकार है ?
  1. कामता प्रसाद गुरु 
  2. श्यामसुन्दर दास 
  3. भगवती प्रसाद वाजपेयी 
  4. किशोरीदास वाजपेयी 
प्रश्न 43 -अपभ्रंश के उत्तरकालीन अवस्था का नाम है -
  1. संस्कृत 
  2. प्राकृत 
  3. पालि 
  4. अवहट्ठ 
प्रश्न 44 -सिंधी भाषा का जन्म किस अपभ्रंश से हुआ है ?
  1. शौरसेनी 
  2. मागधी 
  3. अर्द्ध मागधी 
  4. ब्राचड़ 
प्रश्न 45 -निम्नलिखित में से कौन -सी रचना अपभ्रंश की नहीं है ?
  1. पउम चरिउ 
  2. पाहुड दोहा 
  3. भविसयत कहा 
  4. चित्रावली 
प्रश्न 46 -संविधान के किस अनुछेद के अनुसार हिंदी भारत की राजभाषा है 
  1. 373
  2. 347
  3. 343
  4. 350
प्रश्न 47 -निम्नलिखित में से मानक हिंदी का आदर्श क्षेत्र है 
  1. हरियाणा 
  2. मेरठ 
  3. दिल्ली 
  4. हिमांचल प्रदेश 
प्रश्न 48 -निम्नलिखित में से कौन अवधी भाषा का कवि नहीं है -
  1. जायसी 
  2. कुतुबन 
  3. उसमान 
  4. नंददास 
प्रश्न 49 -निम्नलिखित में से पश्चिमी हिंदी की बोली कौन -सी नहीं है -
  1. खड़ी बोली 
  2. ब्रज भाषा 
  3. कन्नौजी 
  4. बघेली 
प्रश्न 50 -अपभ्रंश और ब्रजभाषा के योग से कौन सी भाषा बनती है ?
  1. पिंगल 
  2. डिंगल 
  3. अवधी 
  4. अवहट्ठ 

उत्तरमाला 

  1. -4-14सितम्बर 
  2. -3- 17 
  3. -1--10जनवरी 
  4. -1- 8अनुसूची 
  5. -2-मालवी
  6. -2- कनौजी 
  7. -1-अंग्रेजी  
  8. -1-21वा 
  9. -2-संथाली 
  10. -2-बांगरू 
  11. -3-छत्तीसगढ़ी 
  12. -4-मगही
  13. -1- गुजरती 
  14. -1-अवधी 
  15. -4-खड़ीबोली -बुंदेली 
  16. -2-बघेली 
  17. -4-छत्तीसगढ़ी 
  18. -3-अर्द्धमागधी 
  19. 3-ब्रज 
  20. -1-भाष 
  21. -2-शौरसेनी 
  22. --1-संस्कृत 
  23. -1-कौरवी 
  24. -1-खड़ीबोली 
  25. -2-बुंदेली 
  26. -2-बघेली
  27. -1-ब्राचड 
  28. -1-पंजाब 
  29. -1-पंजाब 
  30. -4-348 
  31. -2-14सितम्बर  1949
  32. -2
  33. -4
  34. -4
  35. -1
  36. -2
  37. -2
  38. -3
  39. -1
  40. -1
  41. -4
  42. -4
  43. -4
  44. -4
  45. -4
  46. -3
  47. -2
  48. -4
  49. -4
  50. -1

 

 

नाखून क्यों बढ़ते हैं


                                       नाखून क्यों बढ़ते हैं

 विधा - निबंध

रचनाकार- हजारी प्रसाद द्विवेदी

  निबंध संग्रह कल्पलता से निबंध लिया गया है। 

 निबंध की मुख्य पंक्तियाँ 

 नाखून क्यों बढ़ते हैं निबंध में हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने मनुष्य के हिंसात्मक प्रवृत्ति के बढ़ने तथा प्रेम संबंधों के कटु होने का वर्णन व्यंग्यात्मक तथा ललित ढंग से किया है निबंध के शुरुआत में ही द्विवेदी जी ने रचनात्मक ढंग से इस निबंध की शुरुआत करते हैं कि बच्चे के पूछने पर के नाखून क्यों बढ़ते हैं एक पुत्र द्वारा पूछे जाने पर पिता इसका उत्तर देने में लोग असमर्थ दिखाई देता है। प्राचीन काल में नाखून रखने का महत्व भी वे दिखाते हैं कि पहले मनुष्य जानवर था उसे अपनी रक्षा के लिए अपने नाखूनों का इस्तेमाल करना होता था मगर आज वह अपने बाहरी नाखूनों को तो काट लेता है लेकिन जो उसके अंदर हिंसात्मक प्रवृत्ति है उसे नहीं मिटाता नाखूनों का स्थान अब हथियारों  ने ले लिया है।  हथियार दिन- प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं यह मनुष्य को पशुता की ओर ही अग्रेषित करना है। 

इंडिपेंडेंस का अर्थ है अनधीनता या किसी अधीनता का अभाव स्वाधीनता शब्द का अर्थ है अपने अधीन रहना। 

  सोचना तो क्या उसे इतना भी पता नहीं चलता कि उसके भीतर नख  बढ़ा लेने की जो सहजात प्रवृत्ति है, वह उसके पशुत्व का प्रमाण है उन्हें काटने की जो प्रवृत्ति है, वह उसकी मनुष्यता की निशानी है और यद्यपि पशुत्व  के चिन्ह उसके भीतर रह गए हैं, पर वह पशुत्व को छोड़ चुका है पशु बनकर आगे नहीं बढ़ सकता। उसे कोई रास्ता खोजना चाहिए अस्त्र बढ़ाने की प्रवृत्ति मनुष्यता की विरोधिनी है

  मैं ऐसा तो नहीं मानता कि जो कुछ हमारा पुराना है, जो कुछ हमारा विशेष है, उससे हम चिपटे ही रहे।  पुराने का मोह सब समय वांछनीय ही नहीं होता। मरे बच्चे को गोद में दबाए रहने वाली बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती परंतु ऐसा भी नहीं सोचा जा सकता कि हम नई अनुसन्धित्सा के नशे में चूर होकर अपना  सर्वस्व खो  दें। 

  कालिदास ने कहा था कि सब पुराने अच्छे नहीं होते, सब नए खराब नहीं होते।भले लोग दोनों की जांच कर लेते हैं ,जो हितकर होता है, उसे ग्रहण करते हैं और मूढ़ लोग दूसरों के इशारे पर भटकते रहते हैं। सो हमें परीक्षा करके हितकर वस्तु निकल आए, तो इससे बढ़कर और क्या हो सकता है। 

  मनुष्य पशु से किस बात में भिन्न है ,आहार- निद्रा आदि पशु- सुलभ स्वभाव उससे ठीक वैसे ही है, जैसे अन्य प्राणियों के लेकिन वह फिर भी पशु से भिन्न है उसमें संयम है, दूसरे के सुख-दुख के प्रति संवेदना है श्रद्धा है तब है त्याग है।  यह मनुष्य के स्वयं के उद्बभावित बंधन है। इसलिए मनुष्य झगड़े टंटे को अपना आदर्श नहीं मानता, गुस्से में आकर चढ़ दौड़ने वाली अविवेकी को बुरा समझता है और वचन , मन और शरीर से किए गए असत्याचरण को गलत आचरण मानता है। 

 बृहत्तर जीवन में अस्त्र -शस्त्रों का बढ़ने देना मनुष्य की पशुता की निशानी है और उसे नहीं बढ़ने देना मनुष्यत्व का तकाजा है।  मनुष्य में जो घृणा  है, वह अनायास बिना सिखाया जाती है वह सतपुरा  अशोक तंवर का घोतक है और अपने को संयत रखना दूसरे के मनोभाव का आदर करना मनुष्य का स्वधर्म है

उर्वशी के सम्बन्ध में मुख्य कथन

उर्वशी 

रचनाकार -रामधारी सिंह दिनकर रचना काल -1961 
रचनाकार का जन्म -1908 

रचना के लिए ज्ञानपीठ से सम्मानित  वर्ष -1972

उर्वशी कृति पर भगवतशरण उपाध्याय के लेख से विवाद शुरू हुआ जिसमे अनेक आलोचक सम्मिलित हुए नामवर सिंह के शब्दों में -
                                        जनवरी 1964 की कल्पना पत्रिका में प्रकाशित उर्वशी -परिचर्चा ऐसा ऐतिहासिक दस्तावेज है जिससे समकालीन साहित्य में मूल्यों की सीधी टक्कर का पता चलता है। उर्वशी के निमित्त इस चर्चा में विभिन्न पीढ़ियों और विचारो के इतने कवि -आलोचक का भाग लेना एक घटना थी। 


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  •   भगवतशरण जी बहार से भीतर की यात्रा के पूर्व या अनन्तर यदि सावधानी से भीतर से बाहर की यात्रा भी कर लेते तो उनकी आलोचना में कमजोरियाँ न आ पाती। -मुक्तिबोध 
निसंदेह प्राचीन संस्कृति के सम्बन्ध में मेरा ज्ञान अत्यंत सीमित है। किन्तु जहाँ तक मुझे मालूम है प्राचीन आध्यात्मिक ,सांस्कृतिक और कलात्मक जगत में ,परम तत्व के साक्षात्कार के लिए काम -मार्ग नहीं चुना गया और यह सिद्धों और तांत्रिकों की ,और उनसे प्रभावित अन्य मार्गों की देन  है। -मुक्तिबोध 

कौन सी वह मूल वृत्ति है जिसके फलस्वरूप उन्हें प्राचीन और मध्ययुगीन उत्सों की और जाना पड़ा ?वह है दुर्मम ,एश्वर्य -पूर्ण -काम -विलास  की व्याकुल इच्छा ,और उसकी तृप्ति के औचित्य की स्थापना की आकांक्षा। चूँकि इस प्रकार की इच्छापूर्ति के औचित्य का सर्वोच्य विधान आध्यात्मिक रहस्यवाद ही हो सकता है , इसलिए उन्होंने महासुखवाद   का पल्ला पकड़ा।  -मुक्तिबोध 

उर्वशी एक बृहद कल्पना -स्वप्न है ,जिसके द्वारा और जिसके माध्यम से ,लेखक अपनी कामात्मक स्पृहाओं का आदर्शीकरण करता है और उन्हें एक सर्वोच्च आध्यात्मिक औचित्य प्रदान करता है। कथानक की ऐतिहासिकता केवल एक भ्रम है। -मुक्तिबोध 

उर्वशी की रचना इतिहास -शास्त्रीय दृष्टिकोण से नहीं की गयी है। ---वह एक ऐसा काव्य है ,जिसमे प्राचीन जीवन के मनोहर वातावरण की कवि -प्रणीत कल्पना को बृहद रूप देने का प्रयत्न किया गया है। -मुक्तिबोध 

उर्वशी का कवि 'संस्कृति के चार अध्याय' नमक पुस्तक का लेखक होने के कारण अपने को इतिहासशास्त्री बनाने का आडम्बर भी तो करता है।  -मुक्तिबोध 

सामाजिक प्रतिष्ठा और प्रभाव के परिचालन -द्वारा साहित्यिक प्रतिष्ठा और प्रभाव के विकास और प्रसार के दृश्य हिंदी साहित्य में खूब ही है।  मुक्तिबोध 

उर्वशी के तथाकथित ऐतिहासिक पक्ष की भगवतशरण जी ने जो आलोचना की है वह महत्वपूर्ण और अत्यंत उपयोगी है। -मुक्तिबोध 

उर्वशी का मूल दोष यह है की वह एक कृत्रिम मनोविज्ञान पर आधारित है। -मुक्तिबोध 

हमारा समाज इस समय न मोहनजोदड़ो के युग में है न व्रजयानियों के युग में ,जहाँ अनुभव के क्षणों को धार्मिक -मनोवैज्ञानिक रूप दिया जा सके। -मुक्तिबोध 

कौन है वे प्रज्ञावान भोगी जिन्हे रति -सुख की चरम परिणीति से अतीन्द्रिय सत्ता से साक्षात्कार होता है।-  मुक्तिबोध 

सांस्कृतिक ध्वनियों और प्रतिध्वनियों का निनाद करते है ,मानो पुरुरवा और उर्वशी के रतिकक्ष में भोंपू लगे हो जो शहर बाजार में रति -कक्ष के आडंबरपूर्ण कामात्मक संलाप का प्रसारण -विस्तारण कर रहे हो। -मुक्तिबोध 

वैसे तो में कल्पना भी नहीं कर सकता की रति -सुख की विविध संवेदनाओं की बारीकियाँ और गहराइयाँ नर और नारी के बीच चर्चा का विषय हो सकती है।-मुक्तिबोध  

सच तो यह है की लेखक को ,सिर्फ एक बात छोड़कर ,और कोई खास बात नहीं कहनी है। उसके पास कहने के लिए ज्यादा कुछ है भी नहीं। और जो कहना है वह यही की कामात्मक अनुभव के माध्यम से आध्यात्मिक प्रतीति सिद्ध हो सकती है। किन्तु यह कहने के लिए उसने व्यापक आयोजन किया है ,वह उसे पुरे समारोह के साथ ,अपना समय लेते हुए कहना चाहता है। -मुक्तिबोध 


कल्पना की पुनरावृति होती है ,और प्रतीति होता है की लेखक किसी मनोवैज्ञानिक काम -ग्रंथि से पीड़ित है। -मुक्तिबोध 


पुरुरवा की विवाहिता स्त्री  तपस्या का उपदेश दिया गया किन्तु उसके प्रति दिनकर के ह्रदय में विशेष करुणा नहीं है -मुक्तिबोध 


किसी भी कृति के मूल्य के सम्बन्ध में जितने माथे उतने मत हो सकते है ,लेकिन कोई -न -कोई इतनी निरपेक्ष कसौटी तो होनी ही चाहिए जिस पर उसे कसा जा सके और जिसे सब स्वीकार करें। किसी भी कृति के सम्बन्ध में कम -से -कम इस बात पर मतैक्य होना ही चाहिए की वह साहित्यिक कृति है या नहीं। मतभेद इस बात पर हो सकता है की वह उत्कृष्ट है या नहीं। - नामवर सिंह 


उस रचना को काव्य नहीं  ,इतिहास का ग्रन्थ मानकर उसका मूल्य आँका जाना बिलकुल अनर्गल बात है।  -रघुवीर सहाय

वास्तव में उस लेख की कमी यह है की उन्होंने एक काव्यकृति की समीक्षा उस मनोभूमि से की है जो काव्य की समीक्षा के उपयुक्त ही नहीं है। -धर्मवीर भारती


उपाध्यायजी ने पूरे उर्वशी काव्य को एक दृष्टि की समग्रता में,अंतर्योजना ,मूल्य -साँचे से सम्पृक्ति के आधार पर नहीं जाँचा। वे कभी तो कथा स्रोतों की खोजबीन करके बहुत -कुछ चोरी का मॉल सबित करने पर तुलते है तो कभी कवि के भाषा -सम्बन्धी अज्ञान का मजाक उड़ाने लगते है। कभी वे छंद की चर्चा करते है तो कभी असंगत बिम्ब- विधान की।  उनकी समीक्षा शैली पुराने खानेदार आलोचना से बहुत कुछ भिन्न नहीं है। यहाँ आलोचना और आलोच्य में संवेदनागत धरातल की एक विचित्र एकता है। -देवीशंकर अवस्थी

उर्वशी :दर्शन और काव्य  -गजानन माधव मुक्तिबोध 
मूल्यों का टकराव :'उर्वशी' विवाद - नामवर सिंह 

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उर्वशी के सम्बन्ध में मुख्य कथन 

सहायक ग्रन्थ 

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रीतिकाल ritikal

 रीतिकाल 

समय सीमा -संवत 1700 से 1900 

रीतिकाल के प्रथम कवि 

केशवदास -डॉ नगेन्द्र 
चिंतामणि - रामचंद्र शुक्ल

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रीतिकाल के अन्य नाम 

रीतिकाव्य -डॉ. जार्ज ग्रियर्सन 
अलंकृतकाल - मिश्रबन्धु 
रीतिकाल -रामचंद्र शुक्ल 
श्रृंगारकाल -विश्वनाथ प्रसाद मिश्र 
कला काल -डॉ. रमाशंकर शुक्ल रसाल 
अन्धकारकाल - त्रिलोचन 

मिश्रबन्धु तीन भाई थे -श्याम बिहारी मिश्र ,सुखदेव बिहारी , गणेश बिहारी मिश्र 

रीतिकालीन कवियों का जन्म 

  1. चिंतामणि -1609
  2. भूषण -1613
  3. मतिराम -1617
  4. बिहारी -1595
  5. रसनिधि -1603
  6. जसवंत सिंह -1627
  7. कुलपति मिश्र  -1630
  8. देव -1673
  9. नृप सम्भु -1657
  10. घनानंद -1689
  11. रसलीन -1699
  12. सोमनाथ -1700
  13. भिखारीदास -1705
  14. पद्माकर -1753
  15. ;ग्वाल कवि -1791
  16. द्विजदेव -1820
  17. सेनापति -1589
  18. केशवदास -1560
  19. ठाकुर -1766 

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मुख्य कथन 

हिंदी में  लक्षण ग्रंथों की परिपाटी पर रचना करने वाले जो सैकड़ो कवि हुए है। वे आचार्य के कोटि में नहीं आ सकते। वे वास्तव में कवि ही थे।- रामचंद्र शुक्ल 

इन्होंने शास्त्रीय मत को श्रेष्ठ और अपने मत को गौण मान लिया ,इसलिए स्वाधीन चिंतन के प्रति अवज्ञा का भाव आ गया। -हजारीप्रसाद द्विवेदी 

हिंदी के रीती आचार्य निश्चय ही किसी नवीन सिद्धांत का आविष्कार नहीं कर सके। किसी ऐसे व्यापक आधारभूत सिद्धांत का जो काव्य चिंतन को एक नई दिशा प्रदान करता है ,सम्पूर्ण रीतिकाल में आभाव है। -डॉ. नगेन्द्र 

संस्कृत में अलंकार को लेकर जैसी सूक्ष्म विवेचना हो रही थी ,उसकी कुछ भी झलक इसमें नहीं पाई जाती। शास्त्रीय विवेचना तो बहुत कम कवियों को इष्ट थी ,वे तो लक्षणों को कविता करने का बहाना भर समझते थे। वे इस बात की परवाह नहीं करते थे की उनका निर्दिष्ट कोई अलंकार किसी दूसरे में अंतर्भुक्त हो जाता है ,या नहीं। -       हजारीप्रसाद द्विवेदी 

 रीतिकाल का कोई भी कवि भक्तिभावना से हीन नहीं है -हो भी नहीं सकता था ,क्योंकि भक्ति उसके लिए मनोवैज्ञानिक आवश्यकता थी। भौतिक रस की उपासना करते हुए उनके विलास जर्जर मन में इतना नैतिक बल नहीं था की भक्ति रस में अनास्था प्रकट करें अथवा सैद्धांतिकी निषेध कर सके। - डॉ. नगेंद्र 

रीतिकाल में एक बड़े भाव की पूर्ति हो जनि चाहिए थी पर वह नहीं हुई। भाषा जिस सैकड़ों कवियों द्वारा परिमार्जित हो कर प्रौढ़ता  को पहुंची ,उसी समय व्याकरण द्वारा उसकी व्यवस्था होनी चाहिए थी। ... यदि शब्दों के रूप स्थिर हो जाते और शुद्ध रूपों के प्रयोग पर जोर दिया जाता , तो शब्दों को तोड़ -मरोड़कर विकृत करने का साहस कवियों को न होता , पर इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं हुई ,जिससे भाषा में बहुत कुछ  गड़बड़ी बनी रही। -रामचंद्र शुक्ल 

भाषा के लक्षक और व्यंजक बल की सीमा कहाँ तक है ,इसकी पूरी परख इन्ही को थी। -रामचंद्र शुक्ल (घनांनद के लिए )

प्रेममार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा जवादानी का ऐसा दवा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ - रामचंद्र शुक्ल (घनांनद के लिए )

घनानंद ने न तो बिहारी की तरह तप को बाहरी पैमाने से मापा है , न बाहरी उछल- कूद  दिखाई देती है। जो कुछ हलचल है ,वह भीतर की है ,बाहर से वह वियोग प्रशांत और गम्भीर है। रामचंद्र शुक्ल (घनांनद के लिए )

प्रणय विभोर मन की ऐसी कोई वृत्ति नहीं है जिसका सहज स्वाभाविक चित्रण घनानंद ने न किया हो। रामचंद्र शुक्ल (घनांनद के लिए )

इनकी सी विशुद्ध ,सरस और शक्तिशाली ब्रजभाषा लिखने में और कोई कवि समर्थ नहीं हुआ। रामचंद्र शुक्ल (घनांनद के लिए )

ठाकुर ने लोकोक्तियों  प्रयोग द्वारा ,रसखान ने मुहावरों द्वारा ,आनंदघन ने लक्षणा , मुहावरों व्याकरण -शुद्धि आदि गुणों से भाषा का स्वरुप को सुसंस्कृत बनाया। -डॉ मोहन लाल गौण

केशव को कवि ह्रदय नहीं मिला था। उनमे वह सहृदयता और भावुकता न थी जो एक कवि में होनी चाहिए। कवी कर्म में सफलता के लिए  भाषा पर जैसा अंधकार चाहिए वैसा उन्हें न प्राप्त था। केशव केवल उक्ति वैचित्र्य एवं शब्द क्रीड़ा के प्रेमी थे। -रामचंद्र शुक्ल

रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में पद्माकर को छोड़ और किसी कवि में मतिराम सी चलती भाषा और सरल व्यंजना नहीं मिलती। उनकी भाषा में नाद सौंदर्य भी विद्यमान है। -रामचंद्र शुक्ल (मतिराम के सम्बन्ध में )

इन दो वीरों का जिस उत्साह के साथ सारी हिन्दू जनता स्मरण करती है,उसी की व्यंजना भूषण ने की है। वे हिन्दू जाती के प्रतिनिधि कवि है।

 जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समास शक्ति जितनी ही अधिक होगी उतना ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा। यह क्षमता बिहारी में पूर्णरूप से विद्यमान थी।- रामचंद्र शुक्ल

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आपहुदरी

आपहुदरी 

लेखिका -रमणिका गुप्ता
जन्म -1930
मृत्यु -2019
प्रकाशन वर्ष -2016
विधा -आत्मकथा 

स्त्री आत्मकथा लेखन इस समय जोरों  पर है। 1990 के दशक के बाद महिला आत्मकथाओं की एक क़तार सी लग गई। जिसमें महिलाओं के ऊपर हो रहे अत्याचारों का वर्णन था। वह अपने अधिकार को पाना चाहती थी। उन्हें लड़कों से नीचा देखना , गर्भ में ही मार देना।  ऐसे ही अनेक परिस्थितियों से एक नारी को गुजरना पड़ता था। ऐसे में कई नारी को उनके अधिकारों को प्रेरित करने वाली साहित्यिक रचनाये लिखी गई। उसमे सबसे सशक्त रूप में उभरा आत्मकथा लेखन जो स्त्री की एक सच्ची कथा थी। जो उन लोगों को भी जवाब देती थी जो यह नहीं मानते थे की स्त्रियों के साथ गलत नहीं होता। काफी लेखिकाएँ तो शादी जैसी दाम्पत्य जीवन का सफल निर्वाह करने वाले कारकों को ही गलत ठहराने में लग गई। ऐसी ही लेखिकाओं में है -रमणिका गुप्ता जो शारीरिक यौन संबंधो का कही शिकार हुई तो कही इसके रास्ते वह कई जगह पहुंची। उनके लिए एक से अधिक शारीरिक सम्बन्ध बनाना कोई गलत बात नहीं है। उन्होंने अपने जीवन में अनेक शारीरिक सम्बन्ध बनाए। उन्ही सम्बन्धों की दास्तान  है आपहुदरी। यहाँ उन्होंने उन पारिवारिक रिश्तों को भी खंगाला है जो पवित्र कहलाता है लेकिन अगर वही सम्बन्ध अपवित्र हो जाये तो क्या करे? उन पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है।

रमणिका गुप्ता की पहली आत्मकथा है 'हादसे' जिसमे उनके राजनैतिक ,सामाजिक यथार्थ को दिखाया गया है।
वही आपहुदरी उसके पारिवारिक जीवन की कथा है।

आपहुदरी का अर्थ होता है 'स्वछंद' यह पंजाबी भाषा का शब्द है। लेखिका कहती है -
                                                                                                       
                                                                                                                     " मैं औरत के लिए स्वछंद शब्द को स्वतंत्र से बेहतर मानती हूँ. मैं स्वछन्द होना श्रेयस्कर समझती हूँ चूँकि इसमें छद्म नहीं है , दम्भ भी नहीं है।"

रमणिका गुप्ता अपने वयःसंधि का वर्णन करते हुए बताती है।
                                                                                         "कभी -कभी मैं स्वयं अपने शरीर में होते बदलाव को देखती छूती और अपने अंगो को सहलाती। मुझे कुछ बदला -बदला नजर आता।"

                   "अपने वक्ष को देखकर मुस्कराती। कनखियों से अपने उभार को देखती।"

बलराम रमणिका गुप्ता का पहला प्यार था। वह उसके द्वारा उसके प्यार का अहसास करती है।
                                                                                                                                            "उस दिन मानों  किसी ने हमारी पोर -पोर में बलराम लिख दिया। यह हम दोनों के लिए प्रेम का पहला एहसास था।"

रमणिका गुप्ता का बचपन से ही शारीरिक शोषण होता है। उसका नौकर रामू ही ऐसा करता है।
                                                                                                                                            "मुझे रात भर ऐसा लगता रहा था , जैसे कोई साँप मुझे लपेटे जा रहा है। एक डर -सा मन में समा गया। अगले दिन मैंने जिद्द ठान ली थी कि मैं बीबी जी के पास सोऊंगी ,रामु के पास नहीं।"

एक शिक्षक का दर्जा हमारी संस्कृति और समाज में हमेशा आदर के पात्र रहा है। माता -पिता के बाद गुरु का स्थान  ही सर्वोपरि है।  भक्तिकाल में गुरु को  समाज का सच्चा रूप दिखानेवाला , परमात्मा से साक्षात्कार करवाने वाला माना गया है।

                "सतगुरु की महिमा अनंत ,अनंत किया उपगार।
                 लोचन अनंत उघाड़िया , अनंत दिखावण हार।"

कबीर ने इस दोहे में उन्हें नेत्रों को खोलने वाला बताया है।  सत्य से साक्षात्कार की बात की है।  वही पूज्य समझे जाने वाले गुरु में , ऐसे भी गुरु छुपे हुए है जो अपने स्वार्थों में लिप्त है। हवस के पुजारी है जिन्हें समय मिलने पर वह किसी भी औरत और लड़की को बस एक ही निगाह से देखते है। अपनी यौन इच्छा पूरी करने की ललक उनमे हमेशा समाहित रहती है। रमणिका गुप्ता ने ऐसे ही सत्य को उजागर किया है। यह सह शिक्षक को रमणिका गुप्ता के माता -पिता से ही मिला। वह उनके सामने भी रमणिका गुप्ता के साथ रजाई में बैठ जाता था।

                                                                                                                "वह पापा जी और बीबी जी  की नाक तले मेरी रजाई में घुसकर बैठ जाता था पर उस मास्टर पर पापा जी और बीबी जी का इतना विश्वास था की अगर मैं उसके बारे में कुछ बोलती भी ,तो वह झूठ माना जाता।  उसके खिलाफ बोलने का मतलब था मार खाना।"

यौन इच्छा अब लेखिका की खुद की भी चाह बन गई थी। अब वह इन्ही ख्यालों में खोई रहती थी।
                                                                                                                                        "फिर मास्टर का चेहरा गौण होता गया और रह गया साँप। तब से मैं बिना चेहरे वाली उस हरकत में इतना लिप्त हो गयी की वह एक आदत बन गयी ,जो छूटती न थी।"

लेखिका का यह कथन इस आत्मकथा को और प्रमाणित करता है। आत्मकथा के मुख्य लक्ष्य उसकी सत्यता उसे उजागर करता है की लेखिका ने अपने मन की बात को भी दिखाया है जो मनोवैज्ञानिक सच्चाई है।

रमणिका गुप्ता अपने पारिवारिक सच्चाई  को भी उजागर करती है कि  पिता  , माँ के बाद भी अन्य स्त्रियों से सम्बन्ध रखते थे । वह संतरा नाम के एक हरियाणवी स्त्री के सम्बन्ध में बताती है। संतरा की शादी को 10 साल हो गए थे उसका बच्चा भी नहीं था। घर वाले उसे इसके लिए प्रताड़ित करते थे वह हिस्टीरिया रोग से ग्रसित हो गई। वह ईलाज करने इनके पिता के पास आने लगी।  लेखिका उनके इस सम्बन्ध को यौन सम्बन्ध से जोड़ती हुई दिखाती है।
                   "सुई लगवा के आती हूँ ,कह कर वह पापा जी के कमरे में घुस जाती थोड़ी देर में बाहर आती ,तो चोली बांधती या घघरी संभालती। उसका हिस्टीरिया और बाँझपन दोनों खत्म हो गए।"

वह अपने नाना और मौसी के सम्बन्ध को भी समझ नहीं पाती है की वह कैसा सम्बन्ध है। रमणिका गुप्ता की मौसी शादी के बाद पति को छोड़कर मायके ही रहती है। -
                                                                                    "मुझे नहीं भूलता कभी मौसी का नाना के बाहर वाले कमरे में चुपचाप चले जाना और सलवार टूंगते या गाल पोछते बाहर आना।"

बच्चों के उनके परिवेश का असर उन पर पड़ता है। माता- पिता के सम्बन्ध उनके सामने उनके मनोवैज्ञानिक रूप से निर्माण में सहायक होते है। अगर उनके सामने थोड़ा खुलापन होता है तो उसका नकारात्मक असर बच्चे पर पड़ता है।  'आपका बंटी' उपन्यास में भी यह दिखाया गया है। बंटी अपने माँ और डॉक्टर के कमरे में चला जाता है। तब उसे एक अलग सा अहसास होता है। वही  इसका जिक्र 'शेखर एक जीवनी' में भी है। ऐसे ही स्थिति में 'रमणिका गुप्ता' का भी मनोवैज्ञानिक धरातल तैयार हो रहा था। एक सामान्य खेल है जो अधिकांशतः बच्चे खेलते है बचपन में -शादी का खेल। उसी खेल का जिक्र रमणिका गुप्ता करती है। उस खेल का मनोवैज्ञानिक धरातल हमारा कहा से बना होता है। वही जो हम घर में देखते है क्योंकि इसका खुलापन आपकी गलियों में नहीं होता , न ही हमे 5 क्लास तक ऐसा कुछ पढ़ाया जाता है। यह संस्कार हमे घर से ही प्राप्त होते है। जिसमे गलत सही का ज्ञान नहीं होता बस करने की इच्छा होती है और घर वाले कर रहे है तो अच्छा ही होगा। लेखिका यह खेल अपनी दोस्त खातून के साथ खेलती है।
                                                                 "हमसे तो आपने हमारी कच्छी खुलवा ली ,अब आपकी बारी है। अपनी सलवार खोलो। खातून की सलवार भी मैंने खोल दी। कुछ खास  फर्क न था। सिर्फ बाल उग आये थे। 'यह बनेगी मम्मी' मैं बोली -बीबी जी जब नहाती है तो उनके बाल भी ऐसे होते है।"

रमणिका गुप्ता ने अपनी शादी अपने मन पसंद लड़के से की। जिसका नाम है  वेदप्रकाश , वेदप्रकाश सहायक एम्प्लॉयमेंट ऑफिसर है। रमणिका गुप्ता अपने परिवार से विद्रोह करके अंतर्जातीय विवाह करती है। वेदप्रकाश जाती से बनिया है और रमणिका गुप्ता राजपूत। लेकिन इनका भी परिवार नहीं चल पाया। दोनों एक दूसरे पर शक करते थे।  रमणिका गुप्ता बताती है की वेदप्रकाश अपने छोटे भाई और रमणिका गुप्ता का सम्बन्ध बताते है। लेखिका कहती  है  -

                                        "यशपाल तो मुझे बच्चे जैसा नजर आता था।  मेरे सामने उसके व्यक्तित्व का कोई अंश नहीं था ,जो मेरे अनुरूप या समकक्ष हो। मैं फुट -फुटकर रोई  थी उस दिन।"

वही लेखिका वेदप्रकाश गुप्ता का  सम्बन्ध  उनकी भाभी से जोड़ती है। वह यहाँ तक कह देती है की उनकी भाभी की छोटी लड़की वेदप्रकाश गुप्ता की ही है।

                                                                          "भी प्रकाश के कॉलेज से आने की  राह  ताकती रहती। उनके आते ही चुपचाप टेबल पर चाय लेकर रख देती थी। स्नेह से नाश्ता भी परोस देती थी। कभी प्यार से मुँह में खिला देती और उनका जूठन खुद खा लेती। भाभी के पति बाहर ही रहते थे। उनके पास प्रकाश ही होता था। भाभी की छोटी बेटी तो प्रकाश की ही बेटी थी।"

यहाँ से शुरू होती है रमणिका गुप्ता के शारीरिक इच्छा पूर्ति की दास्तान जो शुरू हुई और अलग अलग लोगो से बनती भी रही। कभी अपने नृत्य शिक्षक के साथ , आहूजा के साथ , और जो भी उन्हें अच्छा लगा उनके साथ चाहे अच्छी उपाधि प्राप्त करनी हो तो मुख्यमंत्री या फिर कैबिनेट मंत्री के साथ।

आहूजा के साथ बनाए गए सम्बन्ध के बारे में लेखिका बताती है-                         
                                                                                                   "अपने को पहचानने , अपनी पहचान बनाने और कुछ कर गुजरने के इरादे से लैस ,लक्ष्य स्पष्ट नहीं था पर कुछ छटपटाहट थी ,एक असंतोष था ,एक बौखलाहट भी और कुछ हासिल करने की ललक ,हदे छू रही इच्छा। यह इच्छा ही मेरे जीने की इच्छा शक्ति थी। शायद जो अच्छे ,बुरे सब रास्ते टटोलने से गुजर नहीं सकती थी।"

वही लेखिका यह भी दिखती है की आहूजा किस प्रकार उनके अंगो की व्याख्या करता था। -
                                                                                                                                           "वह मेरे एक- एक अंग  की व्याख्या करता , एक -एक अंग का एहसास मुझे कराता उसकी तेज साँस मुझे छूती और मेरी साँसे पी जाती।"   

बिहार के मुख्यमंत्री के साथ बनाये सम्बन्ध के बारे में बताती है।      
                                                                                           "तुम कॉंग्रेस पार्टी का काम करो। मेरा मन तो तुमने जीत  ही लिया है। यह कहते हुए उन्होंने मुझे आगोश में लेकर चुम लिया। मैं विरोध नहीं कर सकी या शायद में अपना देख रही थी।"

रमणिका गुप्ता की  आत्मकथा कितना सार्थक प्रभाव डालेगी यह में नहीं कह सकता। यह आत्मकथा बचपन तक के दौर में काफी प्रभावी है। लेकिन जैसे यह शादी के बाद अपने अन्य सम्बन्धों के स्तर पर  गलत होती है और लेखिका उसी का पल्ला पकड़ कर ऊपर चढ़ी है। मेरा तो उनसे यह प्रश्न है की वो आपहुदड़ी है तो तब उनका स्वर कहा चुप हो जाता है जब उनका शिक्षक उनके साथ गलत करता है ,रामू उनके साथ गलत करता है। यहाँ रमणिका गुप्ता की इच्छा ही सम्बन्ध बनाना है जो  वह अलग -अलग व्यक्तियों से सम्बन्ध बनाती है लेकिन इनकी इसी सच्चाई से दूसरी तरफ वह भी पुरुष नग्न होता है जो स्त्रियों को इसी दृष्टि से देखते है।

अंततः यह आत्मकथा मेरे हिसाब से उन पारिवारिक जीवन मूल्यों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। इस आत्मकथा को लोगों को मनोरंजन के लिए पढ़ने के लिए सही है। अपने जीवन पर लागु करने के लिए नहीं। कुछ चीजे सिखने लायक है ,मगर पुरे आत्मकथा को देखने पर यह अन्य  दैहिक स्वतंत्रता की माँग करने वाली आत्मकथा है। नेट के पाठ्यक्रम में लगने वाली तो कतई नहीं।

आपहुदड़ी आत्मकथा के बारे में कथन -

  • आपहुदड़ी एक दिलचस्प और दिलकश आत्मकथा है। यह एक स्त्री की आत्मकथा है। इसमें विभाजन के समय दंगे दर्ज है , इसमें बिहार राजनेताओं के चेहरे की असलियत दर्ज है। इसमें संवादधर्मिता और नाटकीयता दोनों है।  आत्मकथा इसलिए भी  विशिष्ट है की रमणिका जी ने जैसा जीवन जिया महसूस किया है , वैसा ही लिखा। -      मैनेजर पाण्डेय 

  • एक पाठक के तौर पर में इस आत्मकथा को एक स्त्री की मुक्ति या आजादी के तौर पर नहीं देखता। यह स्त्री वैचारिकी भी नहीं है। आत्मकथा में अद्भुत अपूर्व स्मृतिया है। इस आत्मकथा के माध्यम से अपने साहस की कथा कही है।आपहुदड़ी आत्मकथा के रूप में एक मोड़ भी है।  -लीलाधर मंडलोई 

  • आपबीती के इस बयां में ऐसा है क्या जो मुझे स्तब्ध कर रहा है -नैतिक निर्णयों को इसका ठेंगा ,इसका तथा कथित पारिवारिक पवित्रता के ढकोसलों का उद्धघाटन ,इसकी बेबाकबयानी ,इसकी निसंकोच निडरता ,सच बोलने का इसका आग्रह और साहस या अपने बचाव पक्ष के प्रति लापरवाही। -अर्चना वर्मा 

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जामुन का पेड़

जामुन का पेड़ 

व्यंग रचना 

लेखक -कृष्ण चन्दर 

जन्म- 1914 

देहावसान -1977 

प्रकाशन वर्ष -1960 के दशक  में 

लोकतांत्रिक ढांचे में शासन प्रशासन में व्याप्त भ्र्ष्टाचार को उजागर करने वाली व्यंग रचना 

जामुन का पेड़ व्यंग्यात्मक रचना एक जामुन के पेड़ के नीचे दबे व्यक्ति का दर्द , जो अंततः शासन , प्रशासन के लापरवाही के कारण दम तोड़ देता है।  उसकी कथा है कहानी की शुरुवात होती है व्यक्ति के जामुन के पेड़ के नीचे दबने से जो सेक्रेटेरिएट के लॉन में लगी हुई थी।  माली जब एक व्यक्ति को उसके नीचे दबा हुआ देखता है तो वह दौड़ता हुआ चपरासी के पास जाता है।  चपरासी क्लर्क के पास और क्लर्क सुपरिंटेंडेंट के पास।  सभी लोग फिर उस व्यक्ति को देखने आते है। देखने पर क्लर्क उस व्यक्ति के दबने का ध्यान न  देकर वह जामुन के पेड़ के प्रति अपना दर्द बयान करते है।
                            "बेचारा जामुन का पेड़ कितना फलदार था। पहला क्लर्क" 

दूसरे क्लर्क को जामुन का रसीलापन याद आता है। 

                                "इसकी जामुन कितनी रसीली होती थी। दूसरा क्लर्क" 

तीसरे क्लर्क को अपने साथ अपने बच्चों की भी याद आ गयी की कितने खुशी से वह जामुन खाते थे।

"मैं फलों के मौसम में झोली भर के ले जाता था।  मेरे बच्चे इसकी जामुन कितनी खुसी से कहते थे।  तीसरा क्लर्क यह कहते हुए उसका गला भर आया।" 

माली सबको जामुन से ध्यान हटाकर उसके नीचे दबे व्यक्ति के प्रति केंद्रित करता है। तब सुपरिंटेंडेंट,  अंडर सेक्रेटरी के पास ,अंडर सेक्रेटरी ,डिप्टी सेक्रेटरी के पास ,डिप्टी सेक्रेटरी , जॉइंट सेक्रेटरी के पास जॉइंट सेक्रेटरी चीफ सेक्रेटरी के पास जाते है।  इन सब कामों में ही वह अपना आधा दिन बिता देते है। 

इसे वाणिज्य विभाग से , कृषि विभाग को भेजा जाता है क्योंकि यह खेती बाड़ी से सम्बंधित है।  वह यह कहकर इसे हार्टिकल्चर विभाग में भेज देते है की इस पर फल लगा हुआ है इसका आदेश वही से मिलेगा की इसका क्या करना है।  

तीसरे दिन हार्टिकल्चर विभाग अपना सन्देश देते है। 

                                                                     "हैरत है , इस समय जब पेड़ उगाओ स्किम बड़े पैमाने पर चल रही है , हमारे मुल्क में ऐसे सरकारी अफसर मौजूद है। जो पेड़ काटने की सलाह दे रहे है। वह भी फलदार पेड़ को !और वह भी जामुन के पेड़ को !जिसके फल जनता बड़े चाव से खाती है हमारा विभाग किसी भी हालत में पेड़ को काटने की इजाजत नहीं दे सकता।" 

 एक मनचले व्यक्ति ने आदमी को काट कर निकलने की बात कही और बाद में प्लास्टिक सर्जरी के जरिये जोड़ने की। 

                  "आप जानते नहीं है।  आजकल प्लास्टिक सर्जरी के जरिये धड़ की जगह से , इस आदमी को फिर से जोड़ा जा सकता है।"

इसे बिच से काट कर फिर से जोड़ने पर यह जिन्दा रहेगा या नहीं इस लिए रिपोर्ट मेडिकल डिपार्टमेंट में भेजी जाती है। 
बाद में पता चलता है की पेड़ के नीचे दबा हुआ व्यक्ति कवि है। उसने 'ओस के फूल' कविता लिखी है।  फिर वहाँ कवियों का जमावड़ा लग जाता है।  वहाँ कविता होने लगती है।  

अंततः फॉरेस्ट डिपार्टमेंट वाले आरी ले कर उसे काटने आते है। 

                                                                                "दूसरे दिन जब फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में आदमी आरी कुल्हाड़ी लेकर चहुंचे तो उनको पेड़ काटने से रोक दिया गया।  विदेश विभाग से हुक्म आया की इसे न कटा जाये।" 

पेड़ को न काटने का कारण था -
                                                 "इस पेड़ को दस साल पहले पिटोनिया राज्य के प्रधानमंत्री ने सेक्रेटेरिएट के लॉन में लगाया था।"  

अंत में जब आदेश आता है तब सुपरिटेंडेंट उस व्यक्ति को बताने जाता है की कल तुम्हे बचा लिया जायेगा तब तक वह
व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो चूका होता है।

                                                       "सुनते हो ?आज तुम्हारी फाइल मुक्कमल हो गई है। सुप्रीटेंडेट ने शायर के बाजू  को हिलाकर कहा मगर शायर का हाथ सर्द था।  आँखों की पुतलियाँ बेजान थी और चीटियों की एक लम्बी कतार उसके मुँह में जा रही थी।"
"उसकी जिंदगी की फाइल भी मुकम्मल हो चुकी थी।"

अन्य जानकारी 

आई सी एस सी  के पाठ्यक्रम से इसे 2020 में हटा दिया गया। 
यह 2015  से उनके पाठ्यक्रम में लगी हुई थी।

देवकांत सिंह -मोबाईल न-9555935125 

नेट / जे. आर. एफ

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बैच शुरू - 2  जुलाई   2020
एक बैच में अधिकतम विद्यार्थियों की संख्या 15 होगी। 


अँधा युग - धर्मवीर भारती

अँधा युग - धर्मवीर भारती 

धर्मवीर भारती का जन्म -1926 

अँधा युग -1954  

कहानी संग्रह -
  1. मुर्दो का गाँव -1946
  2. चाँद और टूटे हुए लोग -1955 
  3. बंद गली का आखिरी मकान -1969 

निबंध 

  1. ठेले पर   हिमालय -1958
  2. पश्यन्ति-1969 
  3. कहानी -अनकहनी -1970
  4. मुक्तक्षेत्रे :युद्धक्षेत्र-1971 

मुक्तक कविता 

  1. ठंडा लोहा -1952
  2. सात गीत वर्ष-1959 

प्रबंध काव्य 

खण्ड काव्य 

  1. कनुप्रिया -1969 

आलोचना 

  1. प्रगतिवाद एक समीक्षा -1949
  2. मानव मूल्य और साहित्य -1960

एकांकी संकलन 

  1. नदी प्यासी थी -1954

उपन्यास 

  1. गुनाहों का देवता -1949 
  2. सूरज का सातवा घोड़ा -1952

शोध 

  1. सिद्ध साहित्य -1955

अनुवाद 

  1. आस्कर वाइल्ड की कहानियाँ 1956
  2. देशांतर - समकालीन विदेशी कविता का संग्रह -1980

सहयोगी लेखन 

  1. ग्यारह सपनो का देश -1960

धर्मवीर भारती के जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी 

  1. एम. ए  में आने पर इन्होंने श्री पद्मकांत मालवीय के पत्र अभुदय में अंश कालीन आधार पर कार्य किया। 
  2. 1948 में वे  इलाचंद्र जोशी के पत्र संगम में सह -संपादक नियुक्त हुए। इस रूप में दो वर्ष कार्य करते रहे। 
  3. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1960 ई. तक हिंदी विभाग में प्राध्यापक के रूप में नियुक्त रहे। 
  4. 1960 ई. में इन्होंने अध्यापन कार्य छोड़कर धर्मयुग पत्रिका का प्रधान संपादक का दायित्व स्वीकार किया। 
  5. 1961ई. में ये कॉमन -वैल्थ के आमंत्रण पर इंग्लैण्ड तथा यूरोप के अन्य देशो की यात्रा पर गए। 
  6. 1972 ई. में इन्हें इनकी विशिष्ट साहित्यक उपलब्धियों के लिए भारतीय सरकार  द्वारा पद्म श्री उपाधि से सम्मानित किया गया किया गया। 

अँधा युग 

  1. इस दृश्य काव्य में जिन समस्याओं को उठाया गया है , उसके सफल निर्वाह के लिए महाभारत के उत्तरार्द्ध की घटनाओं का आश्रय ग्रहण किया गया है। अधिकतर कथावस्तु प्रख्यात है , केवल  तत्व उत्पाद्य है -कुछ स्वकल्पित पात्र कुछ स्वकल्पित घटनाएँ।  प्राचीन पद्धति भी  देती है।                                                                                                                                               अंधायुग -निर्देश 

स्थापना 

स्थापना में पुरानी कथा की नयी व्याख्या के प्रति सामान्य जिज्ञासा उत्त्पन्न होती है। 

कौरव नगरी 

पहला अंक - पहले अंक में उद्घाटन से पूर्व -कथा का ज्ञान होता हैऔर संजय द्वारा लाय  जाने वाले युद्ध समाचार के प्रति हल्की सी उत्सुकता जागती है। 

पशु  उदय 

दूसरा अंक - दूसरे अंक में अश्वत्थामा का एकालाप रोचक है क्योंकि वह अश्वत्थामा के चरित्र और उसके भावी संघर्ष को निश्चित करने वाली आंतरिक प्रेरणा अथवा कुंठा की नाटकीयता जानकारी देता है।  वृद्ध की हत्या में कार्य व्यापार तीव्रता ग्रहण करता है। 

अश्वत्थामा का अर्द्धसत्य 

तीसरा अंक - तीसरे अंक में दैत्याकार योद्धा के मायावी रूप , युयुत्सु -गांधारी प्रसंग की विडंबना , गूंगे सैनिक के करुण -त्रासद प्रसंग , दुर्योधन -भीम के द्वन्द युद्ध के परिणाम के प्रति दर्शक पाठक का कुतूहल निरंतर बढ़ता रहता है जो अश्वत्थामा द्वारा अर्द्धसत्य की प्राप्ति तथा उसकी प्रतिशोध -प्रतिज्ञा के साथ  अपने चरम पर पहुँच जाता है। 

पंख , पहिये और पट्टियां 

अंतराल - अंतराल में प्रेतलोक के से वातावरण और वृद्ध याचक के संवाद में विचित्रता के कारन रूचि पैदा होती है ,किन्तु युयुत्सु , विदुर तथा संजय की सपाट व्याख्याओं से वह तत्काल ही समाप्त भी हो जाती है। 

गांधारी का शाप 

चौथा अंक - चौथे अंक के आरम्भ में गांधारी के पाषाणी रूप से दर्शक प्रभावित होता है किन्तु संजय विदुर के संवादों द्वारा अश्वत्थामा के प्रतिशोध के जीवंत वर्णन भी दृश्य के आभाव के कारण  दर्शक को पूरी तरह बाँधे रखने में सफल नहीं हो पाते।  संजय की माता में दृश्य की जिज्ञासा है जबकि तरपान यात्रा में कोई रोचकता नहीं है। परन्तु तत्काल अश्वत्थामा और अर्जुन के ब्रह्मस्त्र युद्ध से क्रिया व्यापार तीव्र हो उठता है। दुर्योधन के कंकाल तथा अश्वत्थामा के प्रति कृष्ण के अन्याय के विरुद्ध गांधारी के शाप पर नाटक का कार्य -व्यापार अपनी सीमा पर स्पर्श कर लेता है। 

विजय एक क्रमिक आत्महत्या 

पाँचवा अंक -पांचवे अंक में युधिष्ठिर की चिंता , तत्कालीन राजनितिक स्थिति का वर्णन , युयुत्सु का आत्मघात , धृतराष्ट तथा गांधारी का आत्मदाह  लगभग विवरणात्मक ही है। 

 प्रभु की मृत्यु 

 

 

हिंदी कविता छायावाद के बाद

हिंदी कविता छायावाद के बाद 

DEVKANT SINGH
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DELHI UNIVERSITY      

प्रश्न 1 -निम्न को क्रम से लगाइये ?
  1. तुमने कहा था ,  पुरानी जूतियों का कोरस ,युगधारा ,तालाब की मछलियाँ 
  2. युगधारा ,  तालाब की  मछलियाँ,  तुमने कहा था , पुरानी जूतियों का कोरस 
  3.  तालाब की मछलियाँ , पुरानी  जूतियों का कोरस , तुमने कहा था , युग धारा 
  4. पुरानी  जूतियों का कोरस , तालाब की मछलियाँ , युगधारा , तुमने कहा था 
प्रश्न 2 --निम्न को क्रम से लगाइये ?
  1. गीत फरोश , बुनी हुई रस्सी ,त्रिकाल संध्या , कालजयी 
  2. गीत फरोश , त्रिकाल संध्या , बुन्नी हुई रस्सी , कालजयी 
  3. त्रिकाल संध्या , गीत फरोश , कालजयी , बुन्नी हुई रस्सी 
  4. बुन्नी हुई रस्सी , गीत फरोश , त्रिकाल संध्या , कालजयी 
प्रश्न 3 -निम्न को क्रम से लगाइये ?
  1. अँधा युग  , ठंडा लोहा , सात गीत वर्ष , देशान्तर 
  2. सात गीत वर्ष , अँधा युग , ठंडा लोहा , देशान्तर 
  3. देशान्तर , सात गीत वर्ष , ठंडा लोहा , अँधा युग 
  4. ठंडा लोहा , अँधा युग , सात गीत वर्ष , देशान्तर 
प्रश्न 4 -निम्न को क्रम से लगाइये ?
  1. चक्रव्यूह , परिवेश ;हम तुम , आत्मजयी , वाजश्रवा के बहाने 
  2. आत्मजयी , चक्रव्यूह , वाजश्रवा के बहाने , परिवेश ; हम तुम 
  3. आत्मजयी , परिवेश ; हम तुम , वाजश्रवा के बहाने , , चक्रव्यूह 
  4. वाजश्रवा के बहाने , आत्मजयी , परिवेश 'हम तुम , चक्रव्यूह 
प्रश्न 5 -निम्न को क्रम से लगाइये ?
  1. हरी घास पर क्षण भर ,आँगन  के पर द्वार , कितनी नावों में कितनी बार , सागर मुद्रा 
  2. आँगन के पार द्वार , हरी घास पर क्षण भर , कितनी नावों में कितनी बार , सागर मुद्रा 
  3. सागर मुद्रा , हरी घास पर क्षण भर , आँगन के पार द्वार , कितनी नावों में कितनी बार 
  4. सागर मुद्रा , आँगन के पार द्वार , हरी घास पर क्षण भर , कितनी नावों में कितनी बार 
प्रश्न 6 - नयी कविता की विशेषता है _
  1. अनुभूति की प्रमाणिकता 
  2. देश प्रेम 
  3. बुद्धिमूलक  यथार्थवादी  दृष्टि 
  4. इतिवृत्तात्मकता  
कूट 
  1. -  1,2,4
  2. -  1,,3
  3. -   1,2
  4. -   2,3,4
प्रश्न 7 - "यह कविता देश के आधुनिक जन इतिहास का स्वतंत्रता पूर्व और  पाश्चात्य एक दहकता इस्पाती                         दस्तावेज है।  इसमें अजब और अद्भुत रूप से व्यक्ति और जन का एकीकरण है।" अँधेरे में कविता
               के बारे में यह किस आलोचक का कथन है ?
  1. नामवर सिंह 
  2. रामविलाश शर्मा 
  3. मुक्तिबोध 
  4.  शमशेर बहादुर सिंह 
प्रश्न 8 -'अँधेरे में'  किस प्रकार का पद्य है ?
  1. खंड काव्य 
  2. महाकाव्य 
  3. लम्बी कविता 
  4. मुक्तक 
प्रश्न 9 -'अँधेरे में' कविता को "आत्म संशोधन का अनुसन्धान" किसने कहा है ?
  1. रामस्वरूप चतुर्वेदी 
  2. इन्द्रनाथ मदान
  3. प्रभाकर माचवे 
  4. रामचंद्र शुक्ल 
प्रश्न 10 - "शमशेर मूड्स के कवि है किसी विज़न के नहीं।" शमशेर  के बारे में किस आलोचक का कथन है ?
  1. अज्ञेय 
  2. मुक्तिबोध 
  3. मलयज 
  4. विष्णु खरे 
प्रश्न 11 -"शमशेर का गद्य हिंदी का जातीय गद्य है।" शमशेर के बारे में किस आलोचक का कथन है ?
  1. रामविलास शर्मा 
  2. रामचंद्र तिवारी 
  3. रामचंद्र शुक्ल 
  4. रामस्वरूप चतुर्वेदी 
प्रश्न 12 -'समय देवता' किसकी रचना है ?
  1. माखनलाल चतुर्वेदी 
  2. नरेश मेहता 
  3. केदारनाथ सिंह 
  4. केदारनाथ अग्रवाल 
प्रश्न 13 -'अकाल में सारस' किसकी रचना है ?
  1. माखनलाल चतुर्वेदी 
  2. नरेश मेहता 
  3. केदारनाथ सिंह 
  4. केदारनाथ अग्रवाल 
प्रश्न 14 -"मैं पूरी ताकत के साथ
            शब्दों को फेकना चाहता हूँ।"
           किस कवि  की पंक्ति है ?
  1. माखनलाल चतुर्वेदी 
  2. नरेश मेहता 
  3. केदारनाथ सिंह 
  4. केदारनाथ अग्रवाल 
प्रश्न 15 -"कविता यो ही बन जाती है ,बिना बनाए 
            क्योंकि ह्रदय में , तड़प रही है याद  तुम्हारी।"
              किस कवि  की पंक्ति है ?
  1. माखनलाल चतुर्वेदी 
  2. नरेश मेहता 
  3. केदारनाथ सिंह 
  4. केदारनाथ अग्रवाल 
प्रश्न 16 -'अपनी केवल धार'  कविता किस रचनाकार की है ?
  1. उदय प्रकाश 
  2. अरुण कमल 
  3. मंगलेश डबराल 
  4. ज्ञानेन्द्रपति 
प्रश्न 17 -'पहाड़ पर लालटेन' कविता किस रचनाकार की है ?
  1. उदय प्रकाश 
  2. अरुण कमल 
  3. मंगलेश डबराल 
  4. ज्ञानेन्द्रपति 
प्रश्न 18 -'संशयात्मा' कविता किस कवि की है ?
  1. उदय प्रकाश 
  2. अरुण कमल 
  3. मंगलेश डबराल 
  4. ज्ञानेन्द्रपति 
प्रश्न 19 - "गजल एक लिरिक विधा है जिसकी कुछ अपनी शर्ते है। अपना प्रतीकवाद और जीवंत परम्परा है।"
            किसका कथन है ?
  1. शमशेर बहादुर सिंह 
  2. दुष्यंत कुमार 
  3. फ़िराक गोरखपुरी 
  4. ग़ालिब 
प्रश्न 20 -'सुपर्णखा' किस रचनाकार की  रचना है ?
  1. सूरजपाल चौहान 
  2. सुशीला टाकभौरे 
  3. गोपाल प्रसाद 
  4. ओम  प्रकाश बाल्मीकि 
प्रश्न 21 -'सदियों का संताप' किस कवि की रचना है ?
  1. सूरजपाल चौहान 
  2. सुशीला टाकभौरे 
  3. गोपाल प्रसाद 
  4. ओम  प्रकाश बाल्मीकि 
प्रश्न 22 - कौन सी रचना सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की है ?

  1. बाँस का पुल  
  2.  जमीन पक रही है 
  3. कमल के फूल  
  4. काठ की घंटियाँ 

कूट 
    1. -  1,2,4
    2. -  1,,3
    3. -   1 ,4 
    4. -   2,3,4
प्रश्न 23 - 'धूप के धान' किसकी कविता है ?

  1. रघुवीर सहाय 
  2. गिरजाकुमार माथुर 
  3. भारतभूषण अग्रवाल 
  4. हरिनारायण व्यास 
प्रश्न 24 - 'लोग भूल गए है' किसकी कविता है ?

  1. रघुवीर सहाय 
  2. गिरजाकुमार माथुर 
  3. भारतभूषण अग्रवाल 
  4. हरिनारायण व्यास 
प्रश्न 25 -'मृग और तृष्णा' किसकी कविता है ?
  1. रघुवीर सहाय 
  2. गिरजाकुमार माथुर 
  3. भारतभूषण अग्रवाल 
  4. हरिनारायण व्यास 
प्रश्न 26 - 'उतना वह सूरज' है किसकी कविता है ?
  1. रघुवीर सहाय 
  2. गिरजाकुमार माथुर 
  3. भारतभूषण अग्रवाल 
  4. हरिनारायण व्यास 
प्रश्न 27 - नयी कविता पत्रिका का प्रकाशन किसने किया है ?
  1. जगदीश गुप्त 
  2. मुक्तिबोध 
  3. शमशेर 
  4. नलिनविलोचन शर्मा 
प्रश्न 28 -"प्रयोगवाद शैलीगत विद्रोह है।" किस आलोचक का कथन है ?
  1. डॉ. नगेन्द्र 
  2. केशरी कुमार 
  3. रघुवीर सहाय 
  4. डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी 
प्रश्न 29 -सुमन राजे किस सप्तक की कवियित्री है ?
  1. पहला सप्तक 
  2. दूसरा सप्तक 
  3. तीसरा सप्तक 
  4. चौथा सप्तक 
प्रश्न 30 -"समाज के हित में जैसी क्रांति का सतत प्रक्रिया काम्य है , वैसे ही रचना के हित में प्रयोग की।" प्रयोगवाद के सम्बन्ध में  किस आलोचक का कथन है ?
  1. डॉ. नगेन्द्र 
  2. केशरी कुमार 
  3. रघुवीर सहाय 
  4. डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी 
प्रश्न 31  - 'सुनो कारीगर'  कविता किस रचनाकार की है ?
  1. उदय प्रकाश 
  2. अरुण कमल 
  3. मंगलेश डबराल 
  4. ज्ञानेन्द्रपति 

उत्तरमाला 

  1. 2
  2. 1
  3. 4
  4. 1
  5. 1
  6. 2
  7. 4
  8. 3
  9. 2
  10. 3
  11. 2
  12. 2
  13. 3
  14. 3
  15. 4
  16. 2
  17. 3
  18. 4
  19. 1
  20. 3
  21. 4
  22. 3
  23. 2
  24. 1
  25. 4
  26. 3
  27. 1
  28. 1
  29. 4
  30. 4
  31. 1

अंजो दीदी anjo didi

मनुष्य हूँ - नागार्जुन (कविता )

मनुष्य हूँ - नागार्जुन  (कविता )

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                             नहीं कभी क्या मैं थकता हूँ ?
                             अहोरात्र क्या नील गगन में उड़ सकता हूँ ?
                               मेरे चित्तकबरे पंखो की भास्वर छाया 
                                क्या न कभी स्तम्भित होती है 
                                 हरे धान की स्निग्ध छटा पर ?
                               -उड़द मूँग की निविड़ जटा पर ?
                                 आखिर मैं तो मनुष्य हूँ-----


                        उरूरहित  सारथि है जिसका 
                            एक मात्र पहिया है जिसमें 
                                सात सात घोड़ो का वह रथ नहीं चाहिए 
                            मुझको नियत दिशा का वह पथ नहीं चाहिए 
                             पृथ्वी ही मेरी माता है 
                           इसे देखकर हरित भारत , मन कैसा प्रमुदित हो जाता है ?
                              सब है इस पर ,
                              जीव -जंतु नाना प्रकार के 
                            तृण -तरु लता गुल्म भी बहुविधि 
                               चंद्र सूर्य हैं 
                               ग्रहगण भी हैं 
                                 शत -सहस्र संख्या में बिखरे तारे भी हैं 
                                  सब है इस पर ,
                                      कालकूट भी यही पड़ा है 
                                 अमृतकलश भी यहीं रखा पड़ा है 
                                नीली ग्रीवावाले उस मृत्यंजय का भी बाप यहीं हैं 
                                  अमृत -प्राप्ति के हेतु देवगण  
                                   नहीं दुबारा 
                                  अब ठग सकते 
                                   दानव कुल को 




कविता का मूल विषय 

       मनुष्य हूँ कविता  की मूल विषय एक कवि द्वारा  समाज की स्थितियों का चित्रण है।  इस कविता में कवि ने सर्वप्रथम अपने को मानव रूप में प्रस्तुत किया है। मानव होने के कारन उसकी कल्पना भी कुंठित होती है। वह सर्जनात्मक से भी चुकता है। कवि होने के कारन शेष सृष्टि के साथ वह आत्मीय सम्बन्ध का भी अनुभव करता है। वह जीवन के दुःख  प्रक्रिया के रूप में ग्रहण किया है। कवि भी मनुष्य होता है। इसलिए वो भी भौतिक इच्छाओ की चाह करता है। जैसे अन्य मनुष्य मनुष्य। वह अपने भौतिक जरूरतों के लिए संघर्षरत है और संघर्ष से कविता को रूपाकार करता है। वह लोकिकता के माध्यम से वह लोकोत्तर को पाने का प्रयास करता है।

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छायावाद

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प्रश्न 1 -  'छायावाद का पतन' किस रचनाकार की कृति है ?
  1. नंददुलारे वाजपई 
  2. अशोक वाजपई 
  3. रामविलास शर्मा 
  4. देवराज 
प्रश्न 2 -छायावाद व्यक्तिवाद  की कविता है जिसका आरम्भ व्यक्ति के महत्व को स्वीकार करने और करवाने से हुआ है ?
  1. रामविलास शर्मा 
  2. नामवर सिंह 
  3. शिवकुमार मिश्र 
  4. नगेन्द्र 
प्रश्न 3 -कामायनी को 'छायावाद का उपनिषद' किसने कहा ?
  1. शांतिप्रिय द्विवेदी 
  2. इलाचंद्र जोशी 
  3. रामस्वरूप चतुर्वेदी 
  4. रामचंद्र शुक्ल 
प्रश्न 4 -पंत की कौन सी रचनाएँ मार्क्सवादी दर्शन से  प्रभावित है ?
  1. पल्लव और गुंजन 
  2. ग्रंथि और पल्लव 
  3. युगवाणी और ग्राम्या 
  4. वीणा और गुंजन 
प्रश्न 5 -'लोकायतन' रचना  किसके जीवन पर आधारित है ?
  1. गौतम बुद्ध 
  2. राम 
  3.  महात्मा गाँधी 
  4. रवीन्द्रनाथ टेगौर 
प्रश्न 6 -  "इस करुणा कलित हृदय में
              अब विकल रागिनी बजती 
             क्यों हाहाकार स्वरों में 
                वेदना असीम गरजती ?"
ये  किस कवि की पंक्तिया है 
  1. निराला 
  2. महादेवी वर्मा 
  3. जयशंकर प्रसाद 
  4. सुमित्रानंदन पंत 
प्रश्न 7 -" मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होनी चाहिए।"  निराला के किस कविता संग्रह की भूमिका से लिया गया  है ?
  1. अनामिका 
  2. परिमल 
  3. गीतिका 
  4. आराधना  
प्रश्न 8 -   "जब वेदना के आधार पर स्वानुभूतिमयी अभिव्यक्ति होने लगी तब  में उसे छायावाद नाम से अभिहित किया गया।"  यह कथन किसका है ?
  1. डॉ नगेन्द्र 
  2. रामचंद्र शुक्ल 
  3. महादेवी वर्मा 
  4. जयशंकर प्रसाद 
प्रश्न 9 - 'निहार' की भूमिका किस कवि ने लिखी है ?
  1. मैथिलीशरण गुप्त 
  2. हरिऔध 
  3. निराला 
  4. जयशंकर प्रसाद 
प्रश्न 10 -प्रसाद का कौन -सा काव्य शैवदर्शन के आनंदवाद पर आधारित है ?
  1. चित्राधार 
  2. लहर 
  3. आँसू 
  4. कामायनी 
प्रश्न 11 -'कला और बूढ़ा चाँद' पंत जी की किस विधा की रचना है ?
  1. कविता 
  2. निबंध 
  3. उपन्यास 
  4. आलोचना 
प्रश्न 12 - 'राम की शक्तिपूजा' निराला के किस कविता संग्रह में संकलित है ?
  1. अनामिका 
  2. परिमल 
  3. गीतिका 
  4. आराधना  
प्रश्न 13 -'कामायनी' में सर्गों  का क्रम है ?
  1. चिंता , श्रद्धा ,काम ,आशा 
  2. चिंता ,आशा ,काम ,श्रद्धा 
  3. चिंता ,काम ,श्रद्धा ,आशा 
  4. चिंता ,आशा ,श्रद्धा ,काम 
प्रश्न 14 -"जल उठा स्नेह दीपक -सा ,
              नवनीत ह्रदय था मेरा। 
              अब शेष धूम रेखा से ,
                चित्रित रहा अँधेरा"। 
किस कवि की  पंक्ति है 
  1. मैथिलीशरण गुप्त 
  2. हरिऔध 
  3. निराला 
  4. जयशंकर प्रसाद 
प्रश्न 15 -"छायावाद स्थूल  के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह नहीं रहा।" किस आलोचक का कथन है ? 
  1. नंददुलारे वाजपई 
  2. अशोक वाजपई 
  3. रामविलास शर्मा 
  4. देवराज 
 प्रश्न 16 - निम्नलिखित को सही क्रम से लगाइए ?
  1. महादेवी वर्मा ,  जयशंकर प्रसाद, निराला , पंत 
  2. पंत , निराला , जयशंकर प्रसाद ,महादेवी वर्मा 
  3. जयशंकर प्रसाद , निराला ,पंत , महादेवी वर्मा 
  4. महादेवी वर्मा ,निराला , जयशंकर प्रसाद , पंत 
प्रश्न 17 - निम्नलिखित को सही क्रम से लगाइए ?
  1. रश्मि , निहार , नीरजा , दीपशिखा 
  2. नीरजा , दीपशिखा , निहार , रश्मि 
  3. दीपशिखा , नीरजा ,निहार ,रश्मि 
  4. निहार , रश्मि , नीरजा , दीपशिखा 
प्रश्न 18 - निम्नलिखित को सही क्रम से लगाइए ?
  1. ग्रंथि ,वीणा ,पल्लव ,गुंजन 
  2. वीणा , ग्रंथि , पल्लव , गुंजन 
  3. गुंजन , ग्रंथि ,वीणा , पल्लव 
  4. पल्लव , गुंजन ,वीणा ,ग्रंथि 
प्रश्न 19 - निम्नलिखित को सही क्रम से लगाइए ?
  1. कुकुरमुत्ता ,अणिमा , नए पत्ते ,अर्चना 
  2. अणिमा ,अर्चना , नए पत्ते , कुकुरमुत्ता 
  3. नए पत्ते , अणिमा , अर्चना , कुकरमुत्ता 
  4. अर्चना ,अणिमा ,नए पत्ते , कुकरमुत्ते 
प्रश्न 20 - निम्नलिखित को सही क्रम से लगाइए ?
  1. प्रेमराज्य ,  महाराणा का महत्त्व ,लहर , चित्रधारा 
  2. महाराणा का महत्व , प्रेमराज्य , चित्रधारा ,लहर 
  3. चित्रधारा , महाराणा का महत्त्व , प्रेमराज्य , लहर 
  4. प्रेमराज्य , महाराणा का महत्त्व , चित्रधारा ,लहर 
प्रश्न 21 -"छायावाद उस राष्ट्रीय जागरण की अभिव्यक्ति है ,जो एक और पुरानी रूढ़ियों से मुक्ति चाहता था और दूसरी और विदेशी पराधीनता से।" किस आलोचक का कथन है ?
  1. रामविलास शर्मा 
  2. नामवर सिंह 
  3. शिवकुमार मिश्र 
  4. नगेन्द्र 
प्रश्न 22 -छायावाद की प्रथम प्रयोगशाला किस रचना को कहा जाता है ?
  1. जूही की काली 
  2. झरना 
  3. चित्राधार 
  4. निहार 
प्रश्न 23 -'राम की शक्ति पूजा' में किस रामायण की कथा वस्तु को लिया गया है ?
  1. कम्ब रामायण 
  2. अध्यात्म रामायण 
  3. कृतवास रामायण 
  4. रामचरितमानस 
प्रश्न 24 -'संवेदनशील इन्द्रिय बोध' का कवि किसे कहते है ?
  1. जयशंकर प्रसाद 
  2. निराला 
  3. महादेवी वर्मा 
  4. सुमित्रानंदन पंत 
प्रश्न 25 -"वे मुस्कुराते फूल नहीं जिनको आता है मुरझाना। 
              वे तारों के दीप नहीं जिनको भाता है बुझ जाना।"
           किस कवि की  पंक्ति है 
  1. जयशंकर प्रसाद 
  2. निराला 
  3. महादेवी वर्मा 
  4. सुमित्रानंदन पंत 
प्रश्न 26 -"कविता करने की प्रेरणा मुझे सबसे पहले प्रकृति निरक्षण से मिली ,जिसका श्रेय मेरी जन्मभूमि कुमान्चल प्रदेश को है।" यह कथन किस कवि का है ?
  1. जयशंकर प्रसाद 
  2. निराला 
  3. महादेवी वर्मा 
  4. सुमित्रानंदन पंत 
प्रश्न 27 - स्थापना A -छायावादी कवी मूलतः प्रेम और सौंदर्य के कवि है ,किन्तु उनकी सौंदर्य भावना सूक्ष्म एवं उदात्त है।  उसमे रीतिकाल की स्थूलता एवं मांसलता का नितांत आभाव है। 
                तर्क R  - सौंदर्य चित्रण में छायावादी कवियों की वृति बाह्य वर्णनों में उतनी नहीं रमी ,जितनी आंतरिक सौंदर्य के उद्घाटन रमी। सौंदर्य की अभिव्यक्ति वे सांकेतिक शैली में प्रतीकों के माध्यम से करते है। 

  1. A  और   R दोनों सही 
  2. A आंशिक सही  Rपूरा सही 
  3. Aगलत    R आंशिक सही 
  4. A और   Rदोनों गलत
प्रश्न 28 -इसमें कौन -सी रचना अरविन्द दर्शन से प्रभावित है ?
  1. रजत शिखर 
  2. स्वर्ण किरण 
  3. युगांत 
  4. युगवाणी 
प्रश्न 29 - स्थापनाA -छायावाद रीतिकाव्य की भांति शुद्ध मांसल प्रेम काव्य है।
              तर्कR    -क्योंकि छायावाद कविता में व्यक्तिनिष्ठ भावना की अभिव्यक्ति हुई है।
  1. Aगलत  Rगलत 
  2. Aगलत  Rसही 
  3. Aसही  Rगलत 
  4. A सही Rसही 
प्रश्न 30 -स्थापना A -छायावाद शुद्ध लौकिक प्रेम और सौंदर्य का काव्य है। 
                तर्कR -इसलिए उसमे राष्ट्रबोध और आध्यात्मिक चेतना न के बराबर है। 
  1. Aगलत  Rगलत 
  2. Aगलत  Rसही 
  3. Aसही  Rगलत 
  4. A सही Rसही 

उत्तरमाला 

  1. 4
  2. 2
  3. 1
  4. 3
  5. 3
  6. 3
  7. 2
  8. 4
  9. 2
  10. 4
  11. 1
  12. 1
  13. 4
  14. 4
  15. 3
  16. 3
  17. 4
  18. 1
  19. 1
  20. 4
  21. 2
  22. 2
  23. 3
  24. 4
  25. 3
  26. 4
  27. 1
  28. 2
  29. 1
  30. 4

द्विवेदी युग

द्विवेदी युग 

DEVKANT SINGH
(blog-mukandpr.blogspot.com)
NET~JRF

DELHI UNIVERSITY            


प्रश्न 1 -निम्नलिखित को क्रम से लगाइये 
  1. हरिऔध , रामचरित उपाध्याय ,गयाप्रसाद शुक्ल सनेही ,जयशंकर प्रसाद 
  2. रामचरित उपाध्याय ,गयाप्रसाद शुक्ल सनेही ,जयशंकर प्रसाद ,हरिऔध 
  3. रामचरित उपाध्याय ,हरिऔध , गयाप्रसाद शुक्ल सनेही ,जयशंकर प्रसाद 
  4. रामचरित उपाध्याय ,जयशंकर प्रसाद ,हरिऔध , गयाप्रसाद शुक्ल सनेही 
प्रश्न 2 --निम्नलिखित को क्रम से लगाइये 
  1. वैदेही वनवास , पद्य प्रसून ,प्रियप्रवास , चुभते चौपदे 
  2. चुभते चौपदे , पद्य प्रसून ,प्रियप्रवास ,वैदेही वनवास 
  3. प्रियप्रवास , पद्य प्रसून ,चुभते चौपदे ,वैदेही वनवास 
  4. पद्य प्रसून ,प्रियप्रवास ,वैदेही वनवास , चुभते चौपदे 
प्रश्न 3 --निम्नलिखित को क्रम से लगाइये
  1. भारत भारती ,पंचवटी ,झंकार ,साकेत 
  2. पंचवटी ,झंकार , साकेत ,भारत भारती 
  3. झंकार ,पंचवटी , साकेत , भारत भारती 
  4. साकेत , पंचवटी , भारत भारती , झंकार 
प्रश्न 4 -"देखो हमारा विश्व में कोई नहीं उपमान था 
          नर देव थे हम और भारत देवलोक सामान था।"
             इस पंक्ति के रचनाकार कौन है ?
  1. गयाप्रसाद शुक्ल सनेही 
  2. मैथिलीशरण गुप्त 
  3. माखनलाल चतुर्वेदी 
  4. रामनरेश त्रिपाठी 
 प्रश्न 5 -'कृषक- कुंदन' के रचनाकार है ?
  1. गयाप्रसाद शुक्ल सनेही 
  2. मैथिलीशरण गुप्त 
  3. माखनलाल चतुर्वेदी 
  4. रामनरेश त्रिपाठी 
प्रश्न 6 -"भारतीय संस्कृति के प्रवक्ता होने के साथ -साथ मैथिलीशरण प्रसिद्ध राष्टीय कवी भी है। उनकी प्रायः सभी रचनाएँ  राष्ट्रीयता से ओत -प्रोत है।"  यह कथन किसका है ?
  1. रामविलास शर्मा 
  2. आचार्य रामचंद्र शुक्ल 
  3. डॉ, उमाकांत 
  4. महावीर प्रसाद द्विवेदी 
प्रश्न 7 --निम्नलिखित को क्रम से लगाइये ?
  1. उद्धवशतक ,हिंडोला ,गंगावतरण ,राम की शक्तिपूजा 
  2. उद्धव शतक , गंगावतरण , राम की शक्तिपूजा , हिंडोला 
  3. हिंडोला , गंगावतरण , उद्धवशतक , राम की शक्तिपूजा 
  4. हिंडोला , उद्धवशतक , गंगावतरण , राम की शक्तिपूजा 
प्रश्न 8 -"वंदनीय वह देश जहाँ के देशी निज अभिमानी हो। 
           वन्धवता में बँधे परस्पर परता के अज्ञानी हो।" 
   इस पंक्ति के रचनाकार कौन है ?
  1. श्रीधर पाठक 
  2. महावीर प्रसाद द्विवेदी 
  3. नाथूराम शर्मा शंकर 
  4. जगन्नाथदास रत्नाकर 
प्रश्न 9 -"राष्ट्रीयता गुप्त जी का उद्देश्य है ,पर संस्कृति शुन्य राष्ट्रीयता उन्हें ग्राह्य नहीं" - यह कथन किसका है ?
  1. डॉ. नगेंद्र 
  2. डॉ. सतेंद्र 
  3. नंददुलारे वाजपेयी 
  4. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी 
प्रश्न 10 -"वेदने ! तू भी भली बनी। 
             पाई मैंने आज तुझी में अपनी चाह धनी।" 
                 किस रचना की पंक्ति है ?
  1. यशोधरा 
  2. साकेत 
  3. विष्णुप्रिया 
  4. पंचवटी 
प्रश्न 11 - 'कविता कौमुदी' किसकी रचना है ?
  1. गयाप्रसाद शुक्ल सनेही 
  2. मैथिलीशरण गुप्त 
  3. माखनलाल चतुर्वेदी 
  4. रामनरेश त्रिपाठी
प्रश्न 12 -"गुप्त जी की कविता में राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता है।"  यह कथन किसका है ?
  1. रामविलास शर्मा 
  2. बाबू गुलाबराय 
  3. गणपतिचंद्र गुप्त 
  4. नगेन्द्र 
प्रश्न 13 -  "रूप रस पीवत अघात ना हुते जो तब 
             सोइ  अब आँसू ह्वे उबरी गिरबौ करै।" 
           इस पंक्ति के रचनाकार कौन है ?
  1. श्रीधर पाठक 
  2. महावीर प्रसाद द्विवेदी 
  3. नाथूराम शर्मा शंकर 
  4. जगन्नाथदास रत्नाकर 
प्रश्न 14 - 'स्वदेशी कुण्डल' किसकी रचना है ?
  1. रायदेवी प्रसाद पूर्ण 
  2. बालमुकुंद गुप्त 
  3. लोचनप्रसाद पाण्डेय 
  4. रामचरित उपाध्याय 
प्रश्न 15 -"खड़ीबोली के पद्य विधान पर द्विवेदी जी का पूरा -पूरा असर पड़ा। बहुत से कवियों की भाषा शिथिल और अव्यवस्थित होती थी। द्विवेदी जी के अनुकरण में अन्य लेखक भी शुद्ध भाषा लिखने लगे।" यह कथन किसका है ?
  1. रामविलास शर्मा 
  2. आचार्य रामचंद्र शुक्ल 
  3. डॉ, उमाकांत 
  4. महावीर प्रसाद द्विवेदी 
प्रश्न 16 -किसने द्विवेदी काल को 'जागरण सुधारकाल' नाम से अभिहित किया ?
  1. रामविलास शर्मा 
  2. बाबू गुलाबराय 
  3. गणपतिचंद्र गुप्त 
  4. नगेन्द्र 
प्रश्न 17 - 'कृष्ण शतक' किसकी रचना है ?
  1. हरिऔध 
  2. द्वारिकाप्रसाद मिश्र 
  3. सत्यनारायण कविरत्न 
  4. रूपनारायण पांडेय 
प्रश्न 18 -"चार डगर हमने  भरे तो क्या किया।
            है पड़ा मैदान कोसों का अभी।"
              इस पंक्ति के रचनाकार कौन है ?
  1. हरिऔध 
  2. द्वारिकाप्रसाद मिश्र 
  3. सत्यनारायण कविरत्न 
  4. रूपनारायण पांडेय 
प्रश्न 19 - 'हल्दीघाटी' किसकी  रचना है ?
  1. श्यामनारायण पांडेय 
  2. रूपनारायण पांडेय 
  3. सत्यनारायण कविरत्न 
  4. रामनरेश त्रिपाठी 
प्रश्न 20 -"प्रेम स्वर्ग है , स्वर्ग प्रेम है , प्रेम अशंक अशोक। 
           ईश्वर   का प्रतिबिम्ब प्रेम है , प्रेम हृदय आलोक।"  
   इस पंक्ति के रचनाकार कौन है ?
  1. श्यामनारायण पांडेय 
  2. रूपनारायण पांडेय 
  3. सत्यनारायण कविरत्न 
  4. रामनरेश त्रिपाठी 

उत्तरमाला 

  1. 1
  2. 3
  3. 1
  4. 2
  5. 1
  6. 3
  7. 3
  8. 1
  9. 2
  10. 2
  11. 4
  12. 2
  13. 4
  14. 1
  15. 2
  16. 4
  17. 1
  18. 1
  19. 1
  20. 4

हिंदी साहित्य में किन्नर विमर्श -एक पूर्वपीठिका  साहित्य किसी भी स्थिति की तहों में जाकर समाज का सरोकार उन विमर्शो और मुद्दों से करता है जिस...