वक़्त के नसीब में-कविता

कविता 

शीलू अनुरागी 

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 वक़्त के नसीब में


आज अपने वक़्त पर रो रहा खुद वक़्त है।
वक़्त के नसीब में आया ये कैसा वक़्त है।

न माँ बाप की है चिंता न ही उनका मान है।
एक ही पल में करें उनके कई अपमान है।
मेरा मेरा माँगकर कहते हैं बँटवारा करो।
आते औरत के कहें अब मुझे न्यारा करो।

अपने फूल‌‌-शाखों से अलग हो रहे दरख्त हैं।
वक़्त के नसीब में आया ये कैसा वक़्त है।

ना अपने छोटों से है प्यार न ही शर्म जेठ से।
बस तेरा-मेरा कहते हैं वो, जो जन्मे एक पेट से।
रिश्ते-नाते, भाई-बन्धू ,सब साथ होते थे कभी।
कल सबसे दौलत और अब दौलत से होते हैं सभी।

बहा रहा है आज भाई, भाई का ही रक्त है।
वक़्त के नसीब में आया ये कैसा वक़्त है।

किसी के जीने मरने की, किसी को न परवाह है।
मैं ही मैं है हर तरफ बस मेरे की चाह है।
रगों में सब के हो रहा स्वार्थ का प्रवाह है।
जाने क्यों सबने चुनी ये कूट जीवन राह है

आज के इन्सानी दिल पत्थरों से सख्त हैं।
वक़्त के नसीब में आया ये कैसा वक़्त है।

चलते-फिरते नारियों संग होता दुर्व्यवहार है।
ऐसे में नारी का जीना ज़िंदगी दुष्वार है।
न जानती है आम नारी किसका सुरक्षा नाम है।
रहती है दहशत में सदा चाहे सुबह या शाम है।

भारत माँ की हो रही, लाज आज ध्वस्त है।
वक़्त के नसीब में, आया ये कैसा वक़्त है।

बड़े हैं बहुत भारतीय घर इनके बड़े-बड़े हैं।
लेकिन वो कौन हैं जो सड़कों पर पड़े हैं?
धनी बहुत हैं भारतीय दान देना काम है।
तभी तो यहाँ हर तरफ भिखारी तमाम हैं।

बन रहा उपहास आज, भारत का तो हर वक़्त है।
वक़्त के नसीब में, आया ये कैसा वक़्त है।

चलती कई हैं योजनायें यूँ तो जनहित नाम की।
जनहित का तो पता नहीं पर होती हैं वो नाम की।
भ्रष्ट नेता, कूट नीति और  संग अनावर्ती बोल हैं।
विश्वास का कर-कर के कत्ल, करते कई ये झोल हैं।

देश कि पूँजी करी अब पापियों ने ज़ब्त है।
वक़्त के नसीब में, आया ये कैसा वक़्त है।

छू रहे अब आसमाँ को सब वस्तुओं के दाम हैं।
दुख सह रही प्रजा व राजा कर रहे आराम हैं।
है घूसखोरी हर तरफ पैसों से होता काम है।
रद्दी पड़ी हैं डिगरियाँ इनका ना कोई दाम है।

हर तरह से आम जनता हो रही अब पस्त है।
वक़्त के नसीब में, आया ये कैसा वक़्त है।

बना लिया सरकार ने तो वक़्त को गुलाम है।
ना इसे कोइ फिकर फुरसत से करती काम है।
दयालुओं से भी दयालु सरकार-ए-हिंदुस्तान है।
‘कसाब’ जैसे वहशियों को मानती महमान है।

फांसी की सज़ा पाकर दोषी कैद में ही मस्त हैं।
वक़्त के नसीब में, आया ये कैसा वक़्त है।

संपूर्ण विश्व के समक्ष अब एक ही लाचारी है।
असहाय करती "कोविड-19" की महामारी है।
देश और दुनिया के तो अब बाजार सभी मंद हैं।
ग्रामीण-शहरी,देशी-विदेशी अपने घरों में बंद हैं।

आवागमन भी मौसमों का वक़्त से बेवक़्त है।
वक़्त के नसीब में, आया ये कैसा वक़्त है।

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