नक्सलबाड़ी -धूमिल

नक्सलबाड़ी -धूमिल 



'सहमति  .... 
नहीं ,यह समकालीन शब्द नहीं है 
इसे बालिगों के बीच चालू मत करो'
-जंगल से जिरह करने के बाद 
उसके साथियो ने उसे समझाया की भूख 
का इलाज नीद के पास है। 
मगर इस बात से वह सहमत नहीं था 
विरोध के लिए सही शब्द टटोलते हुए 
उसने पाया की वह अपनी जुबान 
सहवाइन की जांघ पर भूल आया है ,
फिर भी हकलाते हुए उसने कहा -
'मुझे अपनी कविताओं के लिए 
दूसरे प्रजातंत्र की तलाश है '
सहसा तुम कहोगे फिर एक दिन -
पेट के इशारे पर 
प्रजातंत्र से बाहर आकर 
वाजिब गुस्से के साथ अपने चेहरे से 
कूदोगे 
और अपने ही घूँस पर 
गिर पड़ोगे। 

क्या मैंने गलत कहा ?आख़िरकार 
इस खाली पेट के सिवा 
तुम्हारे पास वह कौन -सी सुरक्षित  
जगह है ,जहाँ खड़े होकर 
तुम अपने दाहिने हाथ की
साजिश के खिलाफ लड़ोगे ?

यह एक खुला हुआ सच है की आदमी 
दाये हाथ की नैतिकता से 
इस कदर मजबूर होता है 
की तमाम उम्र गुजर जाती है मगर गाँड़ 
सिर्फ ,बाया हाथ धोता है। 

हवा भी बुझ चुकी है सारे इश्तहार  लिये गये हैं 
जिनमे कल आदमी -
अकाल था। वक्त के 
फालतू हिस्सों में 
छोड़ी गयी पालतू कहानियाँ 
देश -प्रेम के हिज्जे भूल चुकी है ,
और वह सड़क -
समझौता बन गयी है 
जिस पर खड़े होकर 
कल तुमने संसद को 
बाहर आने के लिए आवाज दी थी 
नहीं ,अब वहाँ कोई नहीं है 
मतलब की इबारत से होकर 
सब के सब व्यवस्था के पक्ष में 
चले गये  है। लेखपाल की 
भाषा एक लम्बे सुनसान में 
जहाँ पालो और बंजर का फर्क 
मिट चुका है चन्द खेत 
हथकड़ी पहने खड़े है। 

और विपक्ष में -
सिर्फ कविता है। 
सिर्फ हज्जाम की खुली हुई किस्मत में एक उस्तरा -
चमक रहा है। 
सिर्फ भंगी का एक झाड़ू हिल रहा है 
नागरिकता का हक हलाल करते हुई 
गंदगी के खिलाफ। 

और तुम हो ,विपक्ष में 
बेकारी और नीद से परेशान। 

और एक जंगल है -
 मतदान के बाद खून में अँधेरा 
पछींटता हुआ। 
(जंगल मुखबिर है )

उसकी आँखों में 
चमकता हुआ भाईचारा 
किसी भी रोज तुम्हारे चेहरे की हरियाली को ,
बेमुरव्वत ,चाट सकता है। 

खबरदार !
उसने तुम्हारे परिवार को 
नफरत के उस मुकाम पर ला खड़ा किया हे 
की कल तुम्हारा सबसे छोटा लड़का भी 
तुम्हारे पडोसी का गला 
अचानक ,
अपनी स्लेट से काट सकता है। 
क्या मैंने गलत कहा ?

आख़िरकार   ... आख़िरकार  ... 

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