बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ -महादेवी वर्मा
बिन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ
नीद थी मेरी अंचल निस्पंद कण -कण में ,
प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पंदन में ,
प्रलय में मेरा पता पदचिह्न जीवन में ,
शाप हूँ जो बन गया वरदान बंधन में ,
कूल भी हूँ कुलप्रवाहिनी भी हूँ।
नयन में जिसके जलद वह तृषाक चातक हूँ ,
शलभ जिसके प्राण में वह निठुर दीपक हूँ ,
फूल को उस में छिपाये विकल बुलबुल हूँ ,
एक होकर दूर तन से छाँह वह चल हूँ ,
दूर तुमसे हूँ अखण्ड सुहागिनी भी हूँ।
आग हूँ जिसके ढुलकते बिंदु हिमजल के ,
शून्य हूँ जिसके बिछे है पाँवडे पल के ,
पुलक हूँ वह जो पला है ,कठिन प्रस्तर में ,
हूँ वही प्रतिबिम्ब जो आधार के उर में ,
नील धन भी हूँ सुनहली दामिनी भी हूँ
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