मैं नीर भरी दुख की बदली -महादेवी वर्मा
मैं नीर भरी दुःख की बदली
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा ,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा ,
नयनों में दीपक जलते
पलकों में निर्झरणी मचली।
मेरा पग पग संगीत भरा ,
श्वासों से स्वप्न -पराग झरा ,
नभ के नव रँग बुनते दुकूल ,
छाया में मलय -बयार पली।
मैं क्षितिज -भृकुटि पर घिर धूमिल
चिंता का भार बनी अविरल ,
रज -कण पर जल -कण हो बरसी ,
नवजीवन -अंकुर बन निकली।
पथ को न मलिन करता आना ,
पद -चिह्न न दे जाता जाना ,
सुधि मेरे आगम की जग में ,
सुख की सिहरन अंत खिली।
विस्तृत नभ का कोई कोना ,
मेरा न कभी अपना होना ,
परिचय इतना इतिहास यही ,
उमड़ी कल थी मिट आज चली।
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